महाराजा जसवंत सिंह राठौड़ का परिचय (Maharaja Jaswant Singh Rathore of Marwar History in Hindi)
मारवाड़ के जसवंत सिंह राठौड़ (Jaswant Singh Rathore of Marwar) जोधपुर के महाराजा हुए थे। इन्हे महाराज की उपाधि शाहजहां ने दी थी।
जोधपुर के वीर योद्धा जसवंत सिंह ने अपने जीते जी औरंगजेब की नाक में दम रखा था और जोधपुर क़ी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखने दिया। तभी उनकी मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था क़ी “आज कुफ्र दरवाजा टूट गया”।
मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह राठौड़ का पूरा इतिहास (Jaswant Singh Rathore of Marwar History) जानने के लिए लेख को अंत तक पूरा पढ़े…
मारवाड़ के जसवंत सिंह राठौड़ (Jaswant Singh of Marwar Birth) का जन्म और प्रारंभिक जीवन
जसवंत सिंह राठौड़ (Jaswant Singh Rathore of Marwar) का जन्म 26 दिसंबर 1626 ईस्वी में बुरहानपुर में हुआ था । उनके पिता का नाम गज सिंह राठौड़ था ।
ऐसे तो जसवंत सिंह गजसिंह छोटे पुत्र थे लेकिन महाराजा गज सिंह ने बड़े पुत्र अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore)का स्वभाव के होने के कारण अपनी राजगद्दी पर जसवंत सिंह को ही बैठाया था।
25 मई 1638 के दिन बारह बरस का जसवंत गद्दी पर बैठा। ऐसा भी माना जाता हैं की महाराजा गजसिंह जी ने अपनी प्रेमिका अनारा बेगम के कहने पर छोटे बेटे जसवंत सिंह जी को जोधपुर का शासक बनाया तथा बड़े बेटे अमरसिंह को नागौर दिया गया।
1638 ईस्वी में मुगल सम्राट शाहजहां ने जसवंत को जिलत, जड़ाऊ और जमधर एवं टिका दिया तथा उसे 4000 जात एवं 4000 सवार का मनसब देकर मारवाड़ का शासक स्वीकार किया।
यह रस्म अदायगी आगरा में की गई, आगरा से महाराजा जसवंत सिंह बादशाह के साथ दिल्ली और वहां से जमरूद गया। इसी दौरान उसके मनसब में 1000 की वर्दी कर दी और 5000 जात व 5000 सवार का मनसब प्रदान किया गया 30 मार्च 1640 को महाराज जोधपुर पहुंचे जहां अपनी राजगद्दी मशीनी का उत्सव मनाया ।
1648 ईस्वी में जब शाह अब्बास ने कंधार घेर लिया था तो महाराज को मुगल सेवा के साथ कंधार भेजा गया। कंधार में मर जाने बड़ी वीरता का परिचय दिया था। इसी अवसर पर बादशाह शाहजहां ने उनसे उनके मनसब की संख्या बढ़कर 6000 जात में 6000 सवार कर दी थी।
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धरमत का युद्ध 1658 ई
मुगल सम्राट शाहजहां के चारों पुत्रो (दारा शिकोह, साहशुजा, औरंगजेब और मुराद) के मध्य उत्तराधिकार को लेकर 1658 ,1669 ईस्वी में बहुत युद्ध लड़े गए।
इनमें धरमत (उज्जैन, मध्य प्रदेश) का युद्ध बड़ा प्रसिद्ध रहा था। जसवंत सिंह व अन्य अनेक राजपूत शासक शाही सेना की ओर से डरा शिकोह के पक्ष में तथा औरंगजेब के व खिलाफ में यह युद्ध लड़े थे।
लेकिन कासिम खान ने धोखा दिया जिससे शाही सेना की हार हुई। कहा जाता है कि पराजित महाराजा जसवंत सिंह धरमत के युद्ध स्थल से लौटकर चार दिन बाद 19 अप्रैल 1658 ई को जोधपुर पहुंचा था।
बर्नियर, मनुची एवं काफीफा के अनुसार महाराजा जोधपुर पहुंचे तो उदयपुर रानी महारानी महामाया ने किले के द्वार बंद करवा दिए और महाराज के पास के यह कहलावा भेजा कि राजपूत युद्ध से या तो विजय होकर लौटते हैं या वही वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं।
हमारे महाराज अपनी हार के बाद यहां लौट नहीं सकते यह कोई अन्य व्यक्ति है, यह कहकर वह सती होने की तैयारी करने लगी ।अंत में बताया जाता है की रानी की मां ने उसे समझाया तब जाकर दरवाजा खोला इस कथा को श्यामल दास ने भी मान्यता दी थी।
देवराइ ( दोराई) का युद्ध मार्च (1659 ईस्वी)
यह युद्ध अजमेर के पास में दौरे नामक एक जगह है जिस पर दारा शिकोह और औरंगजेब के मध्य लड़ा गया था। जिसमें औरंगजेब की विजय हुई थी इस युद्ध में जसवंत सिंह ने दशकों का साथ दिया था और बाद में औरंगजेब मुगल सम्राट बना।
आमेर के जयसिंह प्रथम के बीच बचाव से औरंगजेब और जसवंत सिंह का मनमुटाव कम हो गया। सम्राट औरंगजेब ने पुनः उसके खीताब और मनसब बहाल कर दिए थे। 1608 में महाराजा जसवंत सिंह को गुजरात का सूबेदार बनाया गया है।
महाराजा जसवंत सिंह को बाद में गौरंगज़ेब ने शिवजी के विरुद्ध दक्षिण में भेजा जहां इन्होंने शिवाजी को मुगलों से संधि करने हेतु राजी किया था तथा शिवाजी के पुत्र संभाजी को शहजादा मुअज्जम के पास ले और दोनों के मध्य शांति संधि भी करवाई थी।
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महाराजा जसवंत सिंह का विद्यानुराग
महाराजा जसवंत सिंह विद्या अनुरागी थे। उन्होंने रीति और अलंकार का अनुपम ग्रंथ भाषा भूषण की रचना भी की थी।
इसके अलावा महाराज ने परोक्ष सिद्धांत, अनुभव प्रकाश, आनंद विलास सिद्धांत, कर सिद्धांत बौद्ध और प्रबोध चंद्रोदय नाटक भी लिखे थे।उसके दरबारी विद्वानों में दलपति मिश्र, नरसिंह दास ,नवीन कवि बनारसी दास आदि बहुत प्रसिद्ध हुए हैं।
दलपति मिश्र ने जसवंत उद्योत की रचना की थी। मुँहनोत नैनसी महाराज के दरबारी एवं चारण थे नैनसी ने नैंसी रि ख्यात, मारवाड़ रा परगना री विगत भी लिखी थी।
सुरती मिश्रा को जोधपुर नरेश जसवंत सिंह का काव्य गुरु भी कहा जाता है। जोधपुर के दीवान अमर सिंह सुरती मिश्रा के आश्रय दाता थे।
महाराजा जसवंत सिंह के समय के स्थापत्य कार्य :-
जसवंतसिंह की रानी अतिरंगदे ने जोधपुर में ‘जान सागर’ बनवाया , जो ‘शेखावतजी का तालाब‘ भी कहलाता है। जसवंतसिंह की रानी जसवन्तदे ने 1663 में ‘राई का बाग ‘ तथा ‘कल्याण सागर’ नाम का तालाब बनवाया था , जिसे ‘रातानाड़ा‘ भी कहते हैं।
महाराजा जसवंत सिंह ने औरंगाबाद के बाहर अपने नाम पर ‘जसवंतपुरा‘ कस्बा बनवाया और उसके पास जसवंतपुरा नामक तालाब बनवाया। महाराजा जसवंतसिंह ने काबुल से मिट्टी व अनार के पौधे मंगवा कर जोधपुर के बाहर कागा नामक स्थान पर एक बगीचा लगवाया था। मंडोर की छतरियाँ व जसवंतसिंह की छतरी (आगरा) बनवायी ।
जसवंत सिंह राठौड़ की मृत्यु
जसवंत सिंह राठौड़ की मृत्यु 28 नवंबर 1678 ईस्वी में जमरूद (अफगानिस्तान) में हुई थी । महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के समय उनकी रानी गर्भवती थी परंतु जीवित उत्तराधिकारी के ना होने के कारण औरंगजेब ने जोधपुर राज्य को मुगल साम्राज्य में मिला लिया था। जसवंत सिंह की मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था कि “आज कुफ्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया है”।
जसंवत सिंह के लिये हिंदूमात्र के हृदय में सम्मान था और इसी कारण जब औरंगजेब ने जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद जोधपुर को हथियाने और कुमारों को मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया तो समस्त राजस्थान में विद्वेषाग्नि भड़क उठी और राजपूत युद्ध का आरंभ हो गया।
महाराजा जसवंत सिंह प्रथम FAQ
Q 1. 16 अप्रैल 1658 के दिन किस युद्ध में औरंगजेब ने जसवंत सिंह को हराया था?
Ans – धरमत युद्ध में।
Q 2. गजसिंह की मृत्यु के बाद सम्राट शाहजहाँ ने किसे मारवाड़ का शासक स्वीकार किया था?
Ans – गजसिंह की मृत्यु के बाद सम्राट शाहजहाँ ने जसवंत सिंह को मारवाड़ का शासक स्वीकार किया था।
Q 3. जसवंत सिंह का राज्याभिषेक कब किया गया था?
Ans – जसवंत सिंह का राज्याभिषेक 25 मई 1638 ई. को किया गया था।
Q 4. जोधपुर नरेश जसवंतसिंह की पत्नी का नाम क्या था?
Ans – जोधपुर नरेश जसवंतसिंह की पत्नी का नाम महारानी महामाया था।
Q 5. जसवंत सिंह का देहांत कब हुआ था?
Ans – जसवंत सिंह का देहांत 28 नवम्बर, सन् 1678 को हुआ था।
Q 6. जसवंत सिंह की मृत्यु कहा हुई?
Ans – जमरूद अफगानिस्तान में
Q 7. जसवंतसिंह का जन्म कब व कहाँ हुआ था?
Ans – जसवंतसिंह का जन्म 26 दिसंबर, 1626 ई. में बुरहानपुर में हुआ था।