पृथ्वीराज चौहान का परिचय (Who was Prithviraj Chauhan)
पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है। राजपूत चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू सम्राट भी थे। पृथ्वीराज को रायपिथौरा,दलपुंगल ( विश्व विजेता ), हिन्दू सम्राट के नाम से भी जाना जाता था।
उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत में पारम्परिक चौहान क्षेत्र सपादलक्ष पर शासन किया। इतिहासकारों के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान राजपूत (Prithviraj Chauhan) की सेना में करीब 300 हाथी व 3,00,000 सैनिक शामिल थे, सम्राट चौहान का राज्य राजस्थान और हरियाणा तक फैला हुआ था।
युद्ध कला में निपुण और साहसी पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही तीर कमान और तलवारबाजी पसंद करते थे। पृथ्वीराज तृतीय ने अजमेर में कला साहित्य विभाग की स्थापना की जिसका अध्यक्ष पद्मनाभ को बनाया।
पृथ्वीराज चौहान का पूरा इतिहास (Prithviraj Chauhan history in Hindi) पढ़ने के लिए ब्लॉग को अंत तक पढ़े……..
पृथ्वीराज चौहान का जन्म व प्रारंभिक जीवन (Prithviraj Chauhan Birth and Early Life) :-
पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) का जन्म साल 1166 ई. में अन्हिलपाटन गुजरात में चौहान राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरादेवी के घर हुआ था। पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म गुजरात में हुआ था।
पृथ्वीराज गुजरात से अजमेर चले गए। सोमेश्वर की मृत्यु 1177 ई. (1234 (वि.स.) में हुई जब पृथ्वीराज लगभग 11 वर्ष के थे। पृथ्वीराज, जो उस समय नाबालिग थे, ने अपनी माँ के साथ राजगद्दी पर विराजमान हुए। इनकी माता कर्पूरी देवी ने बड़ी कुशलता से प्रारंभ में इनके राज्य को संभाला।
दिल्ली के तत्कालीन शासक और पृथ्वीराज के नाना अनँगपाल तोमर ने जब अपने दोहित्र की प्रतिभा और युद्ध विद्या के बारे में जाना तो बेहद खुश हुए, जिसके बाद उन्होने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान कर दिया।
पृथ्वीराज चौहान छह भाषाएं जानते थे, यही नहीं उन्हे गणित, पुराण, इतिहास, चिकित्सा शास्त्र और सैन्य विज्ञान का भी ज्ञान था।
उनके मुख्यमंत्री का नाम कदंमबास था जो अत्यधिक वीर, विद्वान व स्वामी भक्त था तथा सेना अध्यक्ष का नाम भुवनमल था। पृथ्वीराज चौहान ने 1178 ई. में अपने चाचा अपरगांग्य तथा नागार्जुन को हरियाणा के युद्ध में पराजित किया हिसार तथा गुरुग्राम ( हरियाणा ) क्षेत्रो में भंडानक जनजाति ( मुखिया देवा ) का दमन किया।
इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार, पृथ्वीराज ने 1180 ई. (1237 वि॰स॰) में प्रशासन का वास्तविक नियंत्रण ग्रहण किया।
बचपन से ही सम्राट पृथ्वीराज बेहद साहसी और युद्ध से जुड़े गुणों की जानकारी रखते थे। पृथ्वीराज चौहान इतने बहादुर थे कि माना जाता है बचपन में इन्होंने बिना किसी हथियार के ही एक शेर के जबड़े को चीर दिया था।
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पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की कहानी (Prithviraj Chauhan and Sanyogita Story)
पृथ्वीराज चौहान (Prithvi raj Chauhan) और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी राजस्थान के इतिहास मे अविस्मरणीय है। दोनों ही एक दूसरे से बिना मिले केवल चित्र देखकर एक दूसरे के प्यार मे मोहित हो चुके थे।
वही संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ ईर्ष्या भाव रखते थे, तो अपनी पुत्री का पृथ्वीराज चौहान से विवाह का विषय तो दूर दूर तक सोचने योग्य बात नहीं थी। जयचंद्र केवल पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का मौका ढूंढते रहते थे, यह मौका उन्हे अपनी पुत्री के स्वयंवर मे मिला। राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया |
इसके लिए उन्होने पूरे देश से राजाओ को आमंत्रित किया, केवल पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर। पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उन्होने स्वयंवर मे पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रखी। लेकिन संयोगिता ने स्वयंवर में किसी को पसंद नहीं किया और उन्होंने द्वार पर रखे पृथ्वीराज चौहान के पुतले को माला पहनाने की ठानी ।
इसी स्वयंवर मे पृथ्वीराज ने संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण भरी महफिल मे किया और उन्हे भगाकर अपनी रियासत ले आए और दिल्ली आकर दोनों का पूरी विधि से विवाह संपन्न हुआ. इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और भी बढ़ गयी। इस प्रेम कथा को दशरथ शर्मा ने ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया हैं।
पृथ्वीराज चौहान से सांबन्धित प्रमुख ग्रंथ और विद्वान् –
पृथ्वीराज विजय – जयानक
पृथ्वीराज रासो – चन्दरवरदाई ( पृथ्वी भट्ट )
अन्य विद्वान् – जनार्दन, विश्वरूप, विद्यापति गोड, वागीश्वर, आशाधर
पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई
चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र थे। ये पृथ्वीराज के दरबार के दरबारी कवि भी थे। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) के आत्मा आधारित ‘पृथ्वीराज रासो’ नाम का ग्रंथ भी लिखा था। चंदबरदाई के पढ़े श्लोक के कारण ही पृथ्वी राज शब्दभेदी बाण चलाकर मोहम्मद गोरी की हत्या कर पाते हैं।
तुमुल / महोबा का युद्ध 1182 ई.
तुमुल / महोबा का युद्ध 1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान (Prithvi raj Chauhan) vs परमर्दिदेव चंदेल – महोबा (सेनापति – आल्हा और ऊदा / उदल ) पृथ्वीराज विजय हुए और पंजुनराय को महोबा का प्रशासक नियुक्त किया।
आल्हा और उदल महोबा शासक परमर्दिदेव चंदेल के दो वीर सेनापति थे, जब 1182 ई. मे पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया तो परमर्दिदेव ने अपने दोनों वीर सेनानायकों के पास यह संदेश भिजवाया कि तुम्हारी मातृभूमि पर पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमण कर दिया दोनों परमवीर सेनानायक पृथ्वीराज चौहान के विरोध में वीरता से लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि क़ी रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और इतिहास में अमर हो गए इनके शौर्य गीत “जब तक आल्हा ,उदल है तुम्हें कौन पड़ी परवाह” आज भी जनमानस को उद्वेलित करते हैं।
कवि जगनिक ने आल्हा और उदल के लिए कहा था कि “12 बरस कुक्कर जिए 13 बरस सियार बरस 18 क्षत्रिय जिए आगे जीवै को धिक्कार”। आल्हा छन्द में लिखी आल्हखण्ड की ये पंक्तियाँ तो आज भी नौजवानों में जोश भर देती हैं।
नागौर का युद्ध (1184 ई)
नागौर का युद्ध का 1184 ई. में पृथ्वीराज चौहान (Prithvi raj Chauhan) vs भीमदेव द्वितीय चालुक्य ( सोलंकी ) गुजरात का के युद्ध मध्य हुआ था । युद्धकारण पृथ्वीराज चौहान और भीमदेव द्वितीय दोनों आबू की राजकुमारी इच्छिनी देवी ( आबू की राजकुमारी , सहसमल की पुत्री ) से विवाह करना चाहते थे परन्तु पृथ्वीराज ने इससे विवाह किया। जयदेव परमार ने इनके मध्य संधि करवाई थी।
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पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी (Prithvi raj Chauhan and Mohammad Gauri)
पृथ्वीराज के समय ही उत्तर पश्चिम भाग में गौर वंश का शासन था जिसका नेता शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी था .3 लाख सैनिक और 300 हाथियों के साथ पृथ्वीराज की सेना काफी विशाल थी, जिसके कारण उन्होंने काफी दूर तक अपने राज्य का विस्तार फैलाया था।
पृथ्वीराज रासो के अनुसार 1186 से 1192 ईस्वी तक पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) और मोहम्मद गौरी के बीच में कुल 18 बार युद्ध हुआ था, जिसमें 17 बार तो उन्होंने मोहम्मद गौरी को हराया था।
तराईन का प्रथम युद्ध (1190–1191 ईस्वी)
मोहम्मद गौरी ने चौहान क्षेत्र पर आक्रमण किया और तबरहिन्दा या तबर-ए-हिन्द (बठिंडा) पर कब्जा कर लिया। उन्होंने इसे 1,200 घुड़सवारों के समर्थन वाले ज़िया-उद-दीन, तुलक़ के क़ाज़ी के अधीन रखा।
जब पृथ्वीराज को इस बारे में पता चला, तो उसने दिल्ली के गोविंदराजा सहित अपने सामंतों के साथ तबरहिन्दा की ओर प्रस्थान किया। वर्तमान करनाल हरियाणा के पास तराइन के मैदान में दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ।
युध्द मे केवल वही सैनिक बचे, जो मैदान से भाग खड़े हुये इस युध्द मे मुहम्मद गौरी भी अधमरे हो गए जिसमें मोहम्मद गौरी की भारी पराजय हुई। पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली सामंत गोविंद राज ने अपनी बरछी से मोहम्मद गौरीको घायल कर दिया, घायल गौरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया ।
पृथ्वीराज तबरहिन्दा पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बंदी बना लिया जिसे बाद में रिहा कर दिया था ।
तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ईस्वी)
तराइन के प्रथम युद्ध के बाद मोहम्मद ग़ोरी ने ग़ज़नी लौटने का फैसला किया और अपनी हार का बदला लेने के लिए तैयारी की। तबक़ात-ए नसीरी के अनुसार, उन्होंने अगले कुछ महीनों में 1,20,000 चुनिंदा अफ़गान, ताजिक और तुर्क घुड़सवारों की एक सुसज्जित सेना इकट्ठा की।
इसके बाद उन्होंने जम्मू के विजयराजा द्वारा सहायता से मुल्तान और लाहौर होते हुए चौहान राज्य की ओर प्रस्थान किया। पड़ोसी हिन्दू राजाओं के खिलाफ अपने युद्धों के परिणामस्वरूप पृथ्वीराज (Prithviraj Chauhan) के पास कोई भी सहयोगी नहीं था। फिर भी उन्होंने ग़ोरियों का मुकाबला करने के लिए एक बड़ी सेना इकट्ठा करने में कामयाबी हासिल की।
मोहम्मद ने अपने ग़ज़नी स्थित भाई ग़ियास-उद-दीन से राय-मशविरा लेने के लिये समय लिया। फिर उन्होंने अपने बल का नेतृत्व किया और चौहानों पर हमला किया। गौरी रणनीति के साथ आया था। गौरी ने पृथ्वीराज को संधि का लालच देकर सुबह जल्दी सोती हुई सेना पर आक्रमण कर दिया।
उन्होंने पृथ्वीराज को निर्णायक रूप से हराया। इसके बाद, ग़ोरी ने कई हजार रक्षकों की हत्या करने के बाद अजमेर पर कब्जा कर लिया। कई और लोगों को गुलाम बना लिया और शहर के मंदिरों को नष्ट कर दिया।
तराइन का द्वितीय युद्ध भारत के लिए निर्णायक युद्ध कहलाता हैं।
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पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु (How Prithviraj Chauhan died)
पृथ्वीराज रासो के अनुसार गौरी युद्ध के पश्चात पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य अफगानिस्तान ले जाया गया। वहा उन्हे यतनाए दी गयी तथा पृथ्वीराज की आखो को लोहे के गर्म सरियो द्वारा जलाया गया, इससे वे अपनी आखो की रोशनी खो बैठे।
जब पृथ्वीराज से उनकी मृत्यु के पहले आखरी इच्छा पूछी गयी, तो उन्होने भरी सभा मे अपने मित्र चंदबरदाई के शब्दो पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की इच्छा प्रकट की और इसी प्रकार चंदबरदई द्वारा दोहे का प्रयोग किया, ये दोहा सभी ने सुना होगा,”चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता उपर सुलतान है मत चूके चौहान” ।
इतिहासकार कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान (शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे जिसके कारण चंदबरदाई के इन शब्दों को सुनकर उनको पता चल गया कि सुल्तान किस तरफ बैठा है और उन्होंने एक शब्दभेदी बाण चलाया और मोहम्मद गोरी को मार गिराया और उसके बाद उनके राज्य कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को और पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई को एक दूसरे के चाकू मारकर स्वर्ग चले गए।
पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर बनी फिल्म – (Prithviraj chauhan movie )
पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan Movie) के जीवन पर एक फिल्म बनाई जा चुकी जिसमे भारतीय अभिनेता अक्षय कुमार पृथ्वीराज चौहान की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म पृथ्वीराज रासो पर आधारित है , जो ब्रज भाषा की एक महाकाव्य है , जो पृथ्वीराज चौहान के जीवन के बारे में है।
इस फिल्म में मानुषी छिल्लर ने उनकी 13वी पत्नी संयोगिता की भूमिका निभाते हुएअपनी हिंदी फिल्म की शुरुआत की ।फिल्म में संजय दत्त, सोनू सूद, मानव विज, आशुतोष राणा और साक्षी तंवर भी अहम किरदारों में हैं।
पृथ्वीराज चौहान से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल (Prithviraj Chauhan History Question)
Q : पृथ्वीराज चौहान कहाँ के राजा थे?
Ans : पृथ्वीराज चौहान एक क्षत्रीय राजा थे, जो 11 वीं शताब्दी में 1177-92 तक एक बड़े साम्राज्य अमजेर एवं दिल्ली के राजा थे।
Q : पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
Ans : पृथ्वीराज चौहान का जन्म सन 1166 में गुजरात में हुआ था।
Q : पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब हुई?
Ans : पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब 1192 ईस्वी में हुई।
Q : पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद संयोगिता का क्या हुआ?
Ans : कहते है संयोगिता ने पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद, लाल किले में जोहर कर लिया था. मतलब गरम आग के कुंड में कूद के जान दे दी।
Q :पृथ्वीराज चौहान के घोड़े का क्या नाम था ?
Ans : पृथ्वीराज चौहान के घोड़े का नाम नाट्यरंभा था।
Q :ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत किस राजा के समय आए थे ?
Ans :ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत पृथ्वीराज चौहान के समय गोरी के साथ आए थे