मेवाड़ का इतिहास (Mewar History in Hindi)
मेवाड़ का इतिहास बहुत पुराना है और इसने विभिन्न सांस्कृतिक समृद्धियों और ऐतिहासिक घटनाओं की गर्वित दीवारों को सजाया है। प्राचीन समय में, मेवाड़ भूमि गुहिलोत वंश के अधीन था, जिन्होंने इस क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाया और विभिन्न राजाओं के माध्यम से इसे समृद्धि का केंद्र बनाया।
आज, मेवाड़ एक अनुपम पर्वतीय राज्य है जो अपने ऐतिहासिक धरोहर, विरासती समृद्धि, और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। यहां के पलेस, हवेलियां, और मंदिरों में छुपे हुए इतिहास की कहानी आज भी हर किसी को अपनी महाकाव्यिक गुढ़गतियों में खो जाने पर मजबूर कर देती है।
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मेवाड के प्राचीन नाम
महाभारत काल में मेवाड़ शिवी जनपद के अन्तर्गत आता था। शिवी की राजधानी मध्यमिका (वर्तमान चित्तौड़गढ़) थी।
- मेदपाट – मेव जाति की अधिकता के कारण मेवाड़ को मेदपाट कहा जाता था ।
- उदसर – भीलों का मुख्य क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ को उदसर भी कहा जाता था।
- प्रागवाट – शक्तिशाली, सम्पन्न राजाओ का क्षेत्र क्षेत्र
- मेरुनाल – पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ को प्राचीन काल में मेरुनाल भी कहा गया।
- मेवाड़ का राज्य आदर्श वाक्य– “जो दृढ़ राखै धर्म तिही राखे करतार”
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मेवाड़ का राष्ट्र ध्वज
- मेवाड़ के ध्वज में सबसे ऊपर उगते हुए सू्र्य की आकृति अंकित है।
- एक तरफ व्यक्ति के हाथ में भाला ( भील व्यक्ति ) है तथा दूसरी तरफ व्यक्ति ( सिसोदिया व्यक्ति ) के हाथ में तलवार है।
- ध्वज के नीचे मेवाड़ का आदर्श वाक्य अंकित है – “जो दृढ़ राखै धर्म तिही राखे करतार”
- भाला लिए व्यक्ति भील जाति का है। इतिहासकारों के अनुसार व्यक्ति पूँजा भील है।
- मेवाड़ का वर्तमान राजकीय ध्वज महाराणा प्रताप के काल में निर्मित है
- मेवाड़ राजाओं के प्रमुख शस्त्र – तलवार व भाला थे ।
- मेवाड़ के महाराणाओं को हिंदुआ सूरज कहा जाता हैं
- मेवाड़ के महाराणा कोई भी शुभ कार्य करने या युद्ध में जाने से पहले एकलिंग जी से आज्ञा लेते जिसे आसका मांगना कहते थे
- गुहिल वंश के कुलदेवता- एकलिंग नाथ जी हैं, एकलिंग नाथ जी का मंदिर कैलाशपुरी ( उदयपुर ) में स्थित है।
- जिसका निर्माण बप्पा रावल द्वारा कराया गया।
- एकलिंगनाथ जी मंदिर को पाशुपात सम्प्रदाय की पीठ भी माना जाता है।
- गुहिल वंश के आराध्य देव – गढ़बौर देव हैं, गढ़बौर देव का मन्दिर राजसमंद में स्थित है।
- गढ़बौर देव का अन्य नाम – गढ़बौर चारभुजा नाथ।
- सिसोदिया वंश की कुलदेवी- बाणमाता।
- गुहिलों की आराध्य देवी- गढ़बौर माता हैं, गढ़बौर माता का मन्दिर राजसमंद में स्थित है।
- गुहिल वंश की स्थापना-566 ई. में गुहादित्य द्वारा।
- मुहणोत नैणसी तथा कर्नल जेम्स टॉड ने गुहिल वंश की कुल 24 शाखाएँ बतायी।
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गुहिलों की उत्पत्ति के सिद्धान्त व विभिन्न इतिहासकारो के मत
- अबुल फजल के अनुसार गुहिल ईरानी बादशाह नौशेखाँ आदिल के वंशज है।
- आहड़ शिलालेख के अनुसार डॉ डी आर भंडारकर ने इन्हे ब्राह्मणो की संतान बताया हैं
- गोपीनाथ शर्मा के अनुसार गुहिल मुख्यत: आनंदपुर ( वडनगर गुजरात) के ब्राह्मण थे।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गुहिल वल्लभीनगर शासक शिलादित्य व पुष्पावती के वंशज है।
- डॉ गौरीशंकर ओझा और मुहणौत नैणसी के अनुसार गुहिल सूर्यवंशी थे
- नयनचन्द्र सुरी भी इस मत के समर्थक थे की गुहिल रघुवंशी व सूर्यवंशी थे।
- कान्हा व्यास ने एकलिंग महात्म्य में गुहिलों की विप्र ( ब्राह्मण ) कहा हैं
गुहिलादित्य या गुहादित्य
- जैन ग्रंथो के अनुसार –
पिता- शिलादित्य वल्लभीनगर के शासक।
माता- पुष्पावती - पुष्पावती द्वारा गुफा में जन्म देने के कारण नाम गुहादित्य रखा गया ।
- लालन-पालन वीरनगर की ब्राह्मणी कमलावती ने किया ।
- गुहादित्य भील जाति के सहयोग से शासक बना।
- मण्डेला भील ने अपना अंगूठा काटकर गुहादित्य का राज्याभिषेक किया।
- गुहिलादित्य ने 566 ई. में भीलों के सहयोग से गुहिल वंश की स्थापना की । इसी कारण गुहिलादित्य को वंश का संस्थापक, आदिपुरुष, मूलपुरुष कहा जाता हैं
- गुहादित्य का आठवाँ वंशज बप्पा रावल था।