हसमत वाला राजा के नाम से प्रसिद्ध राजा राव मालदेव राठौड़ (Rao Maldeo Rathore) जिन्होंने वर्तमान राजस्थान राज्य में मारवाड़ राज्य पर शासन किया था।
जिस समय यह मारवाड़ के शासक थे उसी समय दिल्ली पर मुगल बादशाह हुमायूं का शासन था।
इनका पूरा इतिहास जानने से पता लगता है कि राव मालदेव राठौड़ वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक हुआ था जिनको हिंदू बादशाह की उपाधि प्राप्त थी।
अबुल फजल ने इनके लिए कहा था कि भारत के सब सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक हुए हैं, फारसी इतिहासकारों ने इनको हसमत वाला राजा कहा है।
राव मालदेव राठौड़ (Rao Maldeo Rathore History in Hindi) का पूरा इतिहास जानने के लिए एक को अंतिम तक पढ़े……..
राव मालदेव राठौड़ का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Rao Maldeo Rathore Birth)
राव मालदेव राठौड़ (Rao Maldeo Rathore) का जन्म 5 दिसंबर 1511 को मारवाड़ में हुआ था। इनके पिता का नाम राव गांगा था और मालदेव की माता का नाम रानी पदमा कुमारी था जो सिरोही के देवड़ा शासक जगमाल की पुत्री थी।
अपने पिता राव गांगा की मृत्यु के बाद राव मालदेव 5 जून 1532 को जोधपुर की गद्दी पर बैठा था। लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राव गांगा की मृत्यु में मालदेव का हाथ था, इसलिए उनको पितृहंता भी कहा जाता है। इसकी पुष्टि मुहनोत नैंसी ने अपने इतिहास में की है।
राव मालदेव राठौड़ का राज्याभिषेक सोजत (पाली) में हुआ था । राव मालदेव गंगा का सबसे बड़ा पुत्र था। मालदेव ने बाद में 4,000 मजबूत सेना का नेतृत्व किया और फरवरी 1527 को बयाना की घेराबंदी में और एक महीने बाद खानवा में राणा की मदद की। जिस समय उसने मारवाड़ के राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली थी, उस समय उसका अधिकार सोजत और जोधपुर के परगनो पर ही था।
सबसे पहले जब 1532 ईस्वी में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मेवाड़ पर चढ़ाई की उसे समय राव मालदेव ने अपनी सेना भेजकर विक्रमादित्य की सहायता की थी।ख्यात के अनुसार मालदीव ने कुंभलगढ़ में आकर टिके हुए उदय सिंह को राजा घोषित करने तथा बनवीर के विरुद्ध लड़ने में भी अपना योगदान दिया था।
जोधपुर राज्य की ख्यात में लिखा है कि 1532 ईस्वी में राव मालदेव ने राठौड़, जेता ,कुंपा आदि सरदारों को मेवाड़ के उदय सिंह की सहायता के लिए भेजा था।
जिसके फलस्वरुप बनवीर को निकाला गया और उदय सिंह को चित्तौड़ के सिंहासन पर बैठाया गया था इसके बदले में महाराणा ने बसंत राय नाम का हाथी और चार लाख फिरोजे पेश काशी के राव मालदेव के पास भेजें।
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राव मालदेव ((Rao Maldev Rathore) का भाद्राजून पर अधिकार
सर्वप्रथम राव मालदेव ने भाद्राजून के स्वामी वीर पर चढ़ाई कर दी थी। इस समय मेड़ता के स्वामी वीरमदेव ने भी उसकी सेवा के साथ आकर इसमें योगदान दिया कई दिनों के युद्ध के बाद वीरा मारा गया और वहां मालदेव का अधिकार हो गया इसके अलावा रायपुर पर भी मालदेव का अधिकार हो गया था।
जैसलमेर के साथ युद्ध
मालदेव राठौड़ पश्चिम की ओर अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे थे और 1537 में जैसलमेर को घेर लिया। रावल लुनकरण को मालदेव को अपनी बेटी उमादे भट्टियानी (रूठी रानी) से शादी करके शांति के लिए मुकदमा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस गठबंधन के माध्यम से मालदेव अपनी पश्चिमी सीमाओं को सुरक्षित करने और रोजगार देने में सक्षम था।
रानी उमादे विवाह की प्रथम रात्रि को ही अपने पति मालदेव राठौड़ से रूठ गई और आजीवन उनसे रूठी रही । इस कारण उमादे इतिहास में ‘रूठी रानी‘ के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
राव मालदेव की नागौर विजय
नागौर के शासक दौलत खान जब मेड़ता लेने का प्रयास किया, तब राव मालदेव ने खान पर चढ़ाई कर नागौर पर अपना अधिकार कर लिया था। 1534 में मालदेव ने नागौर पर हमला किया और दौलत खान को अजमेर भागने के लिए मजबूर कर दिया। राव मालदेव (Rao Maldev Rathore) ने विरम मांगलिया को यहां का हकीम नियुक्त कर दिया था।
मालदीव का मेड़ता तथा अजमेर पर अधिकार
राव मालदेव के संबंध मेड़ता के राव विरम देव से बिगड़ चुके थे। वीरमदेव को मेड़ता से निकाल दिया गया और अजमेर भी छीन लिया था।
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राव मालदेव और हुमायूं (Rao Maldeo Rathore and Humayu)
शेरशाह सूरी के आने के बाद हुमायूं सिंध की ओर भागा और 1541 ई के प्रारंभ में ही भककर पहुंचा। राव मालदेव ने इसी समय हुमायूं के पास है संवाद भेजा कि वह उसे शेरशाह के विरुद्ध सहायता देने के लिए तैयार है।
इस संदेश में एक चाल थी क्योंकि शेरशाह की अनुपस्थिति में राव मालदेव सीधा दिल्ली और आगरा की ओर प्रयास कर सकता था और हुमायूं के नाम से अपने समर्थकों की संख्या बढ़ा सकता था।
लेकिन हुमायूं ने सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसे थट्टा के शासक शाहहुसैन की सहायता से गुजरात विजय की आशा थी। जब शाहहुसैन और यादगार मिर्जा ने उनके साथ न देकर उनके विरोधी बन गए तो इस निराशा के वातावरण से परेशान होकर हुमायूं ने लगभग 1 वर्ष के बाद मारवाड़ की ओर जाने के बारे में सोचा।
साथ में 1542 को हुमायूं के जोगी तीर्थ पहुंचने पर राव मालदेव द्वारा भेजी गई अशर्फियां तथा रसद से हुमायूं का स्वागत किया गया।
उस समय यह भी संवाद उसके पास भेजा गया कि राव मालदेव हर प्रकार से बादशाह की सहायता के लिए तैयार है और उसे बीकानेर का परगना भी देने के लिए तैयार है। इतना सभी होते हुए भी बादशाह के साथियों को राव मालदेव पर पूरा शक था।
ऐसा बताया जाता है कि यह शक की पूरी जानकारी लेने के लिए हुमायूं में समुद्र, रायमल सोनी अटका आदि को बार-बार भेजता रहा और उनको यही जानकारी प्राप्त हुई कि राव मालदेव(Rao Maldev Rathore) ऊपर से मीठी-मीठी बातें कर रहा है लेकिन उनके दिल में कुछ और ही है।
यह जानकारी पाकर हुमायूं तुरंत अमरकोट की ओर प्रस्थान कर गए । लौटते हुए बादशाही दल का मालदेव की थोड़ी सी सेना ने पीछा किया जिससे भयभीत होकर हुमायूं मारवाड़ से भाग निकला।
पहोबा साहेबा का युद्ध 1542 ई
राव मालदेव ने बीकानेर पर भी चढा़ई की व राव जैतसी को हराकर बीकानेर पर अधिकार किया । यह लड़ाई साहेबा (सूवा) नामक गाँव में हुई थी । मालदीव ने बीकानेर पर चढा़ई करने के लिए कूंपा की अध्यक्षता में सेना भेजी थी। बीकानेर शासक राव जैतसी इस युद्ध में मारा गया था । इस तरह राव मालदेव ने जंगल देश पर अधिकार स्थापित कर लिया था।
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गिरी सुमेल युद्ध 1544 ई (Giri Sumel Battle)
बीकानेर के मंत्री नागराज ने मालदीव के विरुद्ध शेरशाह को सहायता देने के लिए चलने की प्रार्थना की थी। इस तरह मेड़ता के स्वामी वीरम देव भी सहायता चाहता था उस समय।
बताया जाता है कि शेरशाह ने एक चाल चली थी उस समय इसके बारे में नैंसी लिखता है कि मेड़ता के वीरमदेव ने कुछ पैसे राव मालदेव के सेनापति कुंपा के पास भिजवाकर यह कहलवाया की उसके लिए वह कंबल खरीद ले। दूसरे सेनापति जैता के पास भी कुछ पैसे भिजवाकर यह करवाया कि वह उसके लिए सिरोही क़ी तलवार खरीद ले और इसी के साथ राव मालदेव के पास भी यह सूचना भिजवा दी कि उसके सेनापति तो शत्रु से पैसे लेकर उनसे जा मिले हैं।
जब राव मालदेव ने इसकी जांच करवाई तो दोनों सेनापति के डेरो में पैसे मिले थे। इस घटना से राव मालदेव को ऐसा लगा कि उसके साथ धोखा हो रहा है।
धोखे से असंकित होकर अपने सुरक्षा प्रबंधो में हीं लग गया मालदेव क्योंकि राव मालदेव को ऐसा लगा कि अगर उसने युद्ध करा तो मैदान में कहीं सरदार धोखा ना दे दे।
इसी चक्कर में राव मालदेव ने यह गलती करी की आधे सैनिकों को अपने साथ ले लिया और लगभग आधी सेना जैता और कुंपा के साथ शेरशाह सूरी के खिलाफ युद्ध के लिए आगे खड़ी कर दी।
जैतारण के निकट गिरी सुमेल (giri sumel ) नामक स्थान पर जनवरी 1544 में दोनों सेनाओ के मध्य भयंकर युद्ध हुआ था। बताया जाता है कि हर की आशंका से शेरशाह सूरी घबराकर युद्ध के दौरान जमीन पर बैठकर नमाज अदा करने लग गया था।
इस युद्ध में जैता और कुंपा बहुत ही खतरनाक तरीके से युद्ध लड़ा था लेकिन लड़ते-लड़ते आखिरकार दोनों सेनापति जैता और कुंपा वीरगति को प्राप्त हो गए।
जलाल खान जुलानी जलवानी शेरशाह का सेनानायक जिसने अंतिम निर्णायक मोड़ पर पहुंचकर शेरशाह को जीत दिलवाई थी। युद्ध में शेरशाह सूरी की जीत तो हुई लेकिन बताया जाता है कि उस समय शेरशाह ने कहा “एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिंदुस्तान की बादशाह खो देता”।
राव मालदेव ने हार के बाद सिवाना दुर्ग में जाकर शरण ले ली शेरशाह ने जोधपुर दुर्ग खवास खां व ईशा खां को सौंप दिया। वीरमदेव को मेड़ता और कल्याण मल को बीकानेर सौंपकर है फिर अपनी राजधानी लौट गया था।
जब शेरशाह की मृत्यु हो गई थी तो राव मालदेव ने पुनः हमला करके जोधपुर पर अपना अधिकार कर लिया था 1545 ईस्वी में।
राव मालदेव की मृत्यु
राव मालदेव जब जोधपुर की गद्दी पर बैठा था तब से लेकर अंत तक अपना पूरा जीवन युद्ध में रखा था। अपने जीवनकाल में इनके पास सबसे अधिक 58 परगनों का शासन रहा और 52 युद्ध लड़े। 7 नवंबर 1562 ईस्वी में राव मालदेव की मृत्यु हो गई थी। इनके बारे में तबकाते अकबरी का लेखक निजामुद्दीन ने लिखा हैं कि हिन्दुस्तान के राजाओं में मारवाड़ के शासक मालदेव की फौज और शानो शौकत सबसे बढ़कर थी।