samrat mihir bhoj

हिन्दू क्षत्रिय सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई.) का इतिहास

सम्राट मिहिर भोज का परिचय (Samrat Mihir Bhoj History)

मिहिर भोज (Mihir Bhoj) अथवा भोज प्रथम जो गुर्जरात्रा क्षेत्र के राजपूत प्रतिहार वंश के सबसे महान शासक थे। जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया और इनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश में) थी।

इनका सम्राजय मुल्तान से लेकर बंगाल तक था और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक था, जिसे सही अर्थों में साम्राज्य कहा जा सकता है।
मिहिर भोज के पिता का नाम रामभद्र था तथा इनकी माता का नाम अप्पा देवी था। इसका सर्वप्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है, जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत (836 ईसवी) है, अतः इनका शासन का लगभग 836 ईस्वी से प्रारंभ हुआ होगा। इनके शासन शासन काल की अंतिम तिथि 885 हुई है।

इनका सर्वाधिक प्रसिद्ध अभिलेख ग्वालियर अभिलेख प्रशस्ति है जिससे प्रतिहार वंश के बारे में काफी जानकारी मिलती है कश्मीरी कवि कल्हन की राजतरंगिणी में मिहिरभोज की उपलब्धियों को काफी अच्छे तरीके से बताया गया है।

अरब यात्री सुलेमान ने मिहिर भोज (Mihir Bhoj) को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है जिन्होंने मिहिर भोज को अरबों का सबसे बड़ा दुश्मन बताया है।

सम्राट मिहिर भोज  का पूरा इतिहास (Samrat Mihir Bhoj  History in Hindi) पढ़ने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े…..

उपाधि और नाम

ऐसा मना जाता है की मिहिर भोज (Mihir Bhoj) अथवा सूर्य का प्रतीक । ग्वालियर अभिलेख के अनुसार इन्होंने आदि वराह की उपाधि धारण की थी, दौलतपुर अभिलेख इनका नाम प्रभास भी बताता है, परंतु इन्होंने अपनी मुद्राओं पर आदिवराह की उपाधि उत्कीर्ण करवाई थी।

इन्होंने चांदी के दुर्म सिक्के चलवाये थे। उसके समय के चांदी और तांबे के सिक्के जिन पर श्रीमद्आदिवराह अंकित रहता था। ऐसा मना जाता है की मिहिर भोज प्रतिहार वंश का ही नहीं बल्कि पूरे प्राचीन भारतवर्ष का एक महान शासक था।
बताया जाता है कि यह कट्टर इस्लाम विरोधी थे जिन्होंने जबरदस्ती मुसलमानों को हिंदू बनाया था,शायद इसीलिए विदेश यात्री सुलेमान ने मिहिर भोज को इस्लाम दीवार कहा था।

भोज प्रथम (Samrat Mihir Bhoj ) एक पराक्रमी शासक होने के साथ ही विद्वान् एवं विद्या तथा कला का उदार संरक्षक था। अपनी विद्वता के कारण ही उसने ‘कविराज’ की उपाधि धारण की थी। सम्राट मिहिर भोज उज्जैन के महाकाल बाबा के परमभक्त थे।

उसने कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ, जैसे- ‘समरांगण सूत्रधार’, ‘सरस्वती कंठाभरण’, ‘सिद्वान्त संग्रह’, ‘राजकार्तड’, ‘योग्यसूत्रवृत्ति’, ‘विद्या विनोद’, ‘युक्ति कल्पतरु’, ‘चारु चर्चा’, ‘आदित्य प्रताप सिद्धान्त’, ‘आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश’, ‘प्राकृत व्याकरण’, ‘कूर्मशतक’, ‘श्रृंगार मंजरी’, ‘भोजचम्पू’, ‘कृत्यकल्पतरु’, ‘तत्वप्रकाश’, ‘शब्दानुशासन’, ‘राज्मृडाड’ आदि की रचना की।

सम्राट मिहिर भोज (Mihir Bhoj) द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य –

सम्राट मिहिर भोज ने धार्मिक कार्यों के साथ-साथ विकास के भी कई कार्य किए। सम्राट मिहिर भोज ने सरस्वती मंदिर, केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ आदि मंदिरों का निर्माण करवाया था। भोज नगर एवं भोजसेन नामक तालाब का निर्माण मिहिर भोज प्रथम ने करवाया था।

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मिहिर भोज की कुछ राजनीतिक उपलब्धियां

  • मिहिर भोज ने कालिंजर पर अपने अधिकार की स्थापना की तथा वहाँ के चंदेल नरेश जय शक्ति को हराकर अपना अधिकार कालिंजर पर कर लिया था।
  • गुर्जरात्र प्रदेश पर पुन: अपना अधिकार स्थापित करने के लिए मिहिर मौज को मंडोर की प्रतिहार शाखा के राजा बाऊक का दमन करना पड़ा था। यह अनुमान जोधपुर अभिलेख पर आधारित है, इस समय दक्षिणी राजपूताना का चाहमान वंशज मिहिर भोज के अधीन था ऐसा माना जाता है।
  • 882 के पिहोवा अभिलेख से सिद्ध होता है, कि बुद्धदेव के शासनकाल में कुछ व्यापारियों ने वहां के बाजार में घोड़ों का क्रय विक्रय किया था, अभिलेख से यह सिद्ध होता है कि हरियाणा पर भोज का अधिकार था।
  • अपने पूर्वजों की भांति मिहिर भोज (Mihir Bhoj) को भी राष्ट्रकूटो से युद्ध करना पड़ा इस बार युद्ध का श्रीगणेश स्वयं मिहिर भोज ने ही किया था । उन्होंने राष्ट्रकूटो को पराजित करके उज्जैन पर अधिकार कर लिया था तथा उसे अपनी राजधानी बनाया था । इस समय राष्ट्रकूट वंश में कृष्ण द्वीतय का शासन था।
  • मिहिर भोज को अपने समकालीन पाल नरेश देवपाल से युद्ध करना पड़ा। देवपाल पाल वंश का एक महान पराक्रमी राजा था और मिहिर भोज की ही भांति भारतवर्ष में अपना एक छत्र राज्य स्थापित करना चाहता था। देव पाल के बाद उसके उत्तराधिकार नारायण पाल को मिहिर भोज ने बुरी तरह से हराया था।

अरब यात्री सुलेमान

अरब यात्री सुलेमान 851 ईस्वी में मिहिर भोज (Mihir Bhoj) के काल में भारत आया था । इन्होंने मिहिर भोज के संबंध में एक विवरण भी प्रस्तुत किया था ।
सुलेमान का कहना था कि इस नरेश के पास एक विशाल अश्व सेना थी उस अश्व सेना के बराबर भारत में किसी अन्य नरेश के पास ऐसी अश्व सेना नहीं थी।

सुलेमान मिहिर भोज को इस्लाम का शत्रु भी बताता है लेकिन उनके साम्राज्य की प्रशंसा भी करता है और कहता था कि मिहिर भोज का राज्य चोरी डकैतों से एकदम मुक्त था।

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मिहिर भोज (Mihir Bhoj) क़ी मृत्यु

स्कंधपुराण के अनुसार मिहिर भोज (Mihir Bhoj) ने तीर्थ यात्रा करने के लिए राज्य भार अपने पुत्र महेंद्र पाल को देकर शासन त्याग दिया था।

मिहिरभोज क़ी मृत्यु 888 ईस्वी को 72 वर्ष की आयु में हो गयी थी ऐसा मना जाता है। भारत के इतिहास में मिहिरभोज का नाम सनातन धर्म और राष्ट्र रक्षक के रूप में दर्ज है।

राष्ट्रीय राजमार्ग 24 जो दिल्ली से लखनऊ को जोड़ता है का नाम भी  सरकार ने गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के नाम पर , गुर्जर सम्राट मिहिर भोज मार्ग नाम रखा है।

सम्राट मिहिर भोज गुर्जर थे या राजपूत? – Mihir Bhoj Controversy

प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज गुर्जर थे या राजपूत? इसको लेकर विवाद हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 सितंबर 2021 को सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था।

प्रतिमा के शिलापट्ट पर सम्राट मिहिर भोज के आगे लिखे ‘गुर्जर’ शब्द पर कालिख पोतने से हंगामा शुरू हो गया था और हाल हि में सहारनपुर में मिहिर भोज गौरव यात्रा निकालने को लेकर विवाद हो गया था ।

यूपी के बाद अब हरियाणा में उत्तरी भारत के 9वीं शताब्दी के शासक सम्राट मिहिर भोज को लेकर राजपूत और गुर्जर समाज आमने-सामने आ गए हैं राजपूत समाज का दावा है कि मिहिर भोज क्षत्रिय थे। वही गुज्जर समाज का कहना हैं कि, वे गुर्जर थे।
हालाँकि मिहिर भोज को ‘गुर्जर सम्राट’ बताए जाने के विरोध में कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ‘गुर्जर’ शब्द की व्याख्या करने पर हमें पता चलता है कि ये शब्द एक खास क्षेत्र गुर्जरात्रा क्षेत्र के लिए प्रयोग में लाया जाता था

प्रतिहार वंश के वैवाहिक संबंध राजपूत परिवारों में थे. मिहिर भोज की मां अप्पा देवी राजपूत परिवार से आती थीं उनकी पत्नी चंद्रभट्टारिका देवी भी राजपूत परिवार से आती थीं

इतिहासकार सीवी वैद्य, जीएस ओझा, दशरथ शर्मा जैसे अनेक विद्वान इस शब्द का अर्थ गुर्जर देश का प्रतिहार अर्थात शासक लगाते हैं। केएम मुंशी ने विभिन्न उदाहरणों से यह सिद्ध किया है कि गुर्जर शब्द स्थानवाचक है, जातिवाचक नहीं। बड़ौदा के जो गायकवाड़ थे, उन्हें मराठा होने के बावजूद ‘गुर्जर नरेश’ कहा गया था।

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मिहिर भोज से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल (Samrat Mihir Bhoj Questions)

Q. मिहिर भोज की उपाधि
Ans – मिहिर भोज की एक उपाधि ‘आदिवराह’ भी थी। उनके समय के सोने के सिक्कों पर वराह की आकृतियां उकेरी गई थी।
Q.प्रतिहारों का पितृहंता कौन था?
Ans –मिहिर भोज ने अपने पिता रामभद्र की हत्या किन्हीं कारणों से कर दी थी। इस कारण मिहिर भोज को प्रतिहारों का पितृहंता कहा जाता है।

Q मिहिरभोज के समय आने वाले यात्री का नाम?
Ans –अरब यात्री सुलेमान
Q. मिहिर भोज का पिता कौन था?
Ans – रामभद्र
Q. मिहिर भोज की मृत्यु कब हुई?
Ans – 888 ईस्वी

Q.सम्राट मिहिर भोज पार्क कहां है ?
Ans –सम्राट मिहिर भोज का पारक ग्रेटर नोएडा उत्तर प्रदेश में स्थित है

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