मुख्य राजपूत राजवंश (Major Rajput Dynasties)
राजपूत राजवंशों का इतिहास भारतीय साहित्य और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह राजवंश भारतीय इतिहास की गरिमामयी विरासत को प्रतिष्ठित करते हैं।
मध्ययुगीन और बाद के सामंती/ औपनिवेशिक काल के दौरान , भारतीय उपमहाद्वीप के कई हिस्सों पर राजपूतों के विभिन्न राजवंशों द्वारा संप्रभु या रियासतों के रूप में शासन किया गया था ।
प्राचीन भारत के बड़े साम्राज्यों के छोटे-छोटे हिस्सों में बंटने के बाद राजपूतों की राजनीतिक प्रमुखता बढ़ी। राजपूत प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में लगभग सातवीं शताब्दी में प्रमुख हो गए ।
सिसोदिया राजपूत वंश (Sisodia dynasty in Hindi)
सिसोदिया गुहिल वंश की उपशाखा है जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। राहप जो कि चित्तौड़ के गुहिल वंश के राजा के पुत्र थे, शिशोदा ग्राम में आकर बसे, जिस से उनके वंशज सिसोदिया कहलाये। सिसोदिया सूर्यवंशी राजपूत हैं।
राहप ने मंडोर के राणा मोकल परिहार को पराजित कर उसका विरद छीना था, तब से राहप और उसके वंशजों की उपाधी राणा हुई।
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के राजाओं का क्रम (1326–1948 ईस्वी) (Rulers of Mewar dynasty in Hindi)
🔸राणा हम्मीर सिंह (1326–1364)
🔸राणा क्षेत्र सिंह (1364–1382)
🔸महाराणा लाखा (1382–1421)
🔸राणा मोकल (1421–1433)
🔸महाराणा कुम्भा (1433–1468)
🔸उदयसिंह प्रथम (1468–1473)
🔸राणा रायमल (1473–1508)
🔸 राणा सांगा (1508–1527)
🔸रतन सिंह द्वितीय (1528–1531)
🔸राणा विक्रमादित्य सिंह (1531–1536)
🔸बनवीर सिंह (1536–1540)
🔸उदयसिंह द्वितीय (1540–1572)
🔸महाराणा प्रताप (1572–1597)
🔸 महाराणा अमर सिंह प्रथम (1597–1620)
🔸महाराणा करण सिंह द्वितीय (1620–1628)
🔸महाराणा जगत सिंह प्रथम (1628–1652)
🔸महाराणा राज सिंह प्रथम (1652–1680)
🔸जय सिंह (1680–1698)
🔸अमर सिंह द्वितीय (1698–1710)
🔸संग्राम सिंह द्वितीय (1710–1734)
🔸जगत सिंह द्वितीय (1734–1751)
🔸प्रताप सिंह द्वितीय (1751–1754)
🔸राज सिंह द्वितीय (1754–1762)
🔸अरी सिंह द्वितीय (1762–1772)
🔸हम्मीर सिंह द्वितीय (1772–1778)
🔸भीम सिंह (1778–1828)
🔸जवान सिंह (1828–1838)
🔸सरदार सिंह (1838–1842)
🔸स्वरूप सिंह (1842–1861)
🔸शम्भू सिंह (1861–1874)
🔸उदयपुर के सज्जन सिंह (1874–1884)
🔸फतेह सिंह (1884–1930)
🔸भूपाल सिंह (1930–1948)
🔸नाममात्र के शासक (महाराणा)
🔸भूपाल सिंह (1948–1955)
🔸भागवत सिंह (1955–1984)
🔸महेन्द्र सिंह (1984–वर्तमान)
राठौड़ राजपूत वंश (Rathore dynasty in Hindi)
राठौड़ अथवा राठौड एक राजपूत एवं गोत्र है जो उत्तर भारत में निवास करते हैं। इन्हें सूर्यवंशी राजपूत माना जाता है। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे।
राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गाव में बनी हुई है राठौड़ राजपूतो द्वारा युधो में अद्वतिय शौर्य पराक्रम बताने के कारण उन्हें रणबंका राठौड़ भी कहा जाता है 1947 से पूर्व भारत में अकेले राठौड़ो की दस से ज्यादा रियासते थे और सैकड़ो ताजमी ठिकाने थे जिनमे मुख्य जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, सैलाना, झाबुआ, सीतामउ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर वही पूर्व रियासतो में मेड़ता ,मारोठ और गोड़वाड़ घाणेराव मुख्या थे।
मारवाड़ के राठौड़ राजवंश के शासक (Rulers of Marwar dynasty in Hindi)
🔸राव जोधा – जोधपुर के संस्थापक (1459 – 1489)
🔸राव सातल – (1489 -1492)
🔸राव सुजा (1492 -1515)
🔸राव बिरम सिंह – बघा के पुत्र (1515- 1515)
🔸राव गंगा – (1515 – 1532)
🔸राव मालदेव – (1532 -1562)
🔸राव चन्द्र सेन – (1562 1565)
🔸राजा उदय सिंह मोटा राजा – एक जागीरदार के रूप में मुग़लों ने ‘राजा’ पुनः स्थापित किया। (1583 1595)
सवाई राजा सुरजमल – (1595 -1619)
🔸महाराजा गज सिंह प्रथम – (1619 – 1638)
🔸महाराजा जसवंत सिंह – (1638 – 1678)
🔸राजा राय सिंह – राजा अमर सिंह के पुत्र। (1659- 1659)
🔸महाराजा अजीत सिंह – (1679 -1724)
🔸राजा इन्द्र सिंह – औरंगजेब द्वारा महाराजा अजीत सिंह के विरुद्ध घोषित किया गया लेकिन मारवाड़ में लोकप्रिय नहीं हुआ। (1679 -1679)
🔸महाराजा अभय सिंह- (1724 – 1749
🔸 महाराज राम सिंह – 1749 1751)
🔸महाराजा बख्त सिंह- ( 1751 – 1752)
🔸महाराजा विजय सिंह –(1752 1753)
🔸 महाराजा राम सिंह – (1753- 1772)
🔸महाराजा विजय सिंह – (1772 – 1793)
🔸महाराजा भीम सिंह – (1793 – 1803)
🔸महाराजा मान सिंह – (1803- 1843)
🔸महाराजा सर तख्त सिंह – (1843 – 1873)
🔸महाराजा सर जसवंत सिंह द्वितीय – (1873 -1895)
🔸महाराजा सर सरदार सिंह – 1895- 1911
🔸 महाराजा सर सुमैर सिंह – (1911 – 1918)
🔸महाराजा सर उमैद सिंह – (1918- 1947)
🔸 महाराजा हनवंत सिंह – 1947
कछवाहा राजपूत वंश (Kachvaha dynasty in Hindi)
राजस्थान के पूर्वी भाग में जहां ढूढ नदी बहती थी उस क्षेत्र को ढूढाड़ के नाम से जाना जाता है। यहीं पर 1137 ई. में दुल्हाराय ने कछवाह वंश की स्थापना की। 1612 ई. में आमेर लेख मे इस वंश को रधुवंश तिलक कहा गया है। 1170 ई. में मीणो से एक युद्ध में दुल्हाराय मारा गया तब इसका पुत्र कोकिल देव अगला शासक बना। 1207 ई. में कोकिल देव ने मीणों से आमेर छीन लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया जो अगले 520 वर्षो तक कुछवाह वंश की राजधानी रही।
आमेर के कछवाहा वंश के प्रमुख राजा (Rulers of Kachvaha dynasty in Hindi) –
दुल्हेराय (दुलहराय)
काकिलदेव
राजदेव
भारमल (1547- 1573 ई.)
भगवानदास या भगवंतदास (1573- 1589 ई.)
राजा मानसिंह प्रथम (1589- 1614 ई.)
मिर्जा राजा जयसिंह (1621- 1667 ई.)
सवाई जयसिंह (1700- 1743 ई.)
सवाई ईश्वरीसिंह (1743- 1750 ई.)
सवाई माधोसिंह प्रथम (1750- 1768 ई.)
सवाई प्रतापसिंह (1778-1803 ई.)
सवाई जगतसिंह द्वितीय (1803-1818 ई.)
सवाई रामसिंह द्वितीय (1835-1880 ई.)
सवाई माधोसिंह द्वितीय (1880-1922 ई.)
सवाई मानसिंह द्वितीय (1922- 1947 ई.)