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वीर अमर सिंह राठौड़ का इतिहास | Amar Singh Rathore History

अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore) का परिचय

राजस्थान का इतिहास कई महान योद्धाओं और उनके साहसिक किस्सों से भरा है, लेकिन जब हम बात करते हैं वीर योद्धाओं की, तो एक नाम जोधपुर के राजकुमार अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore) के रूप में उभरता है।

अमर सिंह राठौड़  के लिए एक दोहा प्रसिद्ध है ” सस्ती पड़ी न सूर सूं, खग साटै खिल्लीह। अमरै बाही आगरै, पतशाही हिल्लीह। ” अर्थात – वीर अमरसिंह (नागौर) की मजाक उड़ाना तुर्को को महँगा पड़ा, प्रतिशोध में उठी उसकी तलवार ने आगरा में मुगलिया सल्तनत को हिला दिया था।
अमर सिंह राठौड़ अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे, उन्हें राजस्थान में वीरता, स्वाभिमान और बलिदान का प्रतीक भी माना जाता है।
बताया जाता है कि अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore ) हमेशा अपने घोड़े पर सवार रहते थे और साथ में अपनी कटार रखते थे इसलिए इन्हे “कटार का धनी” भी कहा जाता है।

अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore ) का जन्म व प्रारंभिक जीवन

अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore) का जन्म 11 दिसम्बर 1613, मारवाड़ ,राजस्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम गज सिंह राठौड़ था। माता का नाम रानी मनसुखदेजी तथा इनके भाई का नाम जसवंत सिंह राठौड़ था।
अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore ) जोधपुर के महाराजा गजसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। उसकी शिक्षा दीक्षा उत्तराधिकारी राजकुमार के रूप में हुई।
यह थोड़े हठी स्वभाव के थे, लेकिन साथ हि वह कुशाग्र बुद्धि, चंचल स्वाभाव एवं स्वाभिमान से परिपूर्ण थे। अतः अमरसिंह की कीर्ति चारों ओर फ़ैल गई।
अमरसिंह राठौड़ कों महाराजा गजसिंह का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था।

किन्तु इनके इसी हठी स्वभाव के कारण व गजसिंह की उपपत्नी अनारा के षड्यंत्र के कारण योग्य पुत्र अमरसिंह राठौड़ को राजगद्दी न देकर छोटे पुत्र जसवन्त सिंह राठौड़ को मारवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया।
ऐसा माना जाता है कि गजसिंह राठौर की इसी गलती के गलती के कारण आगे जाकर मारवाड़ को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
अपने परिवार द्वारा बेदखल और निर्वासित होने के बाद, वह मुगल बादशाह की सेवा में आ गए । मुगल शासक शाहजहाँ ने अमरसिंह को नागौर की जागीरदारी दे दी।

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मतीरे की राड़ – 1644  ईसवी 

1644 ई में जाखनियाँ गाँव को लेकर बीकानेर के नरेश कर्ण सिंह और अमर सिंह (Amar Singh Rathore ) के मध्य युद्ध हुआ। जो मतीरे की राड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं।

1644 ईसवी में नागौर राज्य की अंतिम सीमा पर स्थित एक किसान के खेत में मतीरे की बेल लगी थी। बेल खेत की मेड पार करके बीकानेर राज्य की सीमा में स्थित एक किसान के खेत में चली गई और वहां पर एक मतीरा लग गया जिस पर उस मतीरे के हक को लेकर दोनों किसानों में झगड़ा हो गया।

इस समय बीकानेर के नरेश कर्ण सिंह थे । 

प्रारम्भ में अमर सिंह विजयी हुआ, मगर दूसरे युद्ध में नागौर को बीकानेर से पराजित होना पड़ा। मुगल दरबार में अमरसिंह के सम्मान के कारण अन्य सरदार इसे नीचा दिखाने की ताक में रहते थे।

मीर बख्शी सलावत खान की हत्या

सम्राट के भाई सलावत खान, राज्य में अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore) के सम्मान के कारण जलते थे और अमर सिंह को बदनाम करने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे।

उन्हें जल्द ही यह मौक़ा मिल गया, जब अमर सिंह की बिना बताये दरबार में अनुपस्थिति के बारे में कुछ छोटी-छोटी बातों के बारे में पता चला ।
बताया जाता है कि एक दिन अमर सिंह राठौड़ मुगल दरबार में उपस्थित हुए तभी सलावत खां के गँवार कह देने पर अमर सिंह ने अपनी कटार निकाली और उसी वक्त एक ही झटके में सलावत खान का सर धड़ से अलग कर दिया था।
सम्राट शाहजहां भी इस घटना से अचंभित हो गए और अमर सिंह को मारने के लिए अपने सैनिकों को आदेश दिया।

हालांकि, बहादुर अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore) ने अपना युद्ध कौशल दिखाया और उन सभी को मार डाला, जिन्होंने उन पर आक्रमण किया था। और अपने घोड़े पर सवार होकर किले से घोड़े सहीत छलांग लगा दी और किले से बाहर निकल कर सुरक्षित स्थान पर लौट गए।
आगरा किले के इसी एक द्वार का नाम उनके नाम पर ‘अमर सिंह गेट’ रखा गया जो आगरा में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।

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अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore ) की मृत्यु

अमर सिंह राठौड़ (Amar Singh Rathore ) की मृत्यु के मामले में एक एक कहानी परचलित है क़ी ,मीर बख्शी सलावत खान की हत्या के बाद अदालत में सम्राट ने घोषणा की कि अमर सिंह को मारने वाले को जागीरदार बना दिया जाएगा।
हालांकि कोई भी अमर सिंह राठौर (Amar Singh Rathore ) के साथ दुश्मनी मोल लेने के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उन्हें सिर्फ एक दिन पहले ही अमर सिंह का क्रोध देखा था ।
अर्जुन सिंह गौड़ जो अमर सिंह के साले थे, अर्जुन सिंह ने लालच में आकर इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। अर्जुन सिंह गौड़ ने अमरसिंह से कहा कि शाहजहां को अपनी गलती का एहसास हो गया है, और वह अमर सिंह जैसा योद्धा खोना नहीं चाहता ।
हालांकि अमर सिंह को शुरुआत में इस बात पर विश्वास नहीं था, परन्तु जल्द ही वे अर्जुनसिंह के विश्वासघात की कला के झांसे में आ गए।

शाही दरबार के षड़यंत्रानुसार अर्जुन गौड़ ने बादशाह से सुलह कराने के नाम पर धोखे में रखकर राव अमरसिंह राठौड़ को बादशाह से मुलाकात कराने के लिए आगरा के किले के दरवाजे में प्रवेश करते समय राव अमरसिंह राठौड़ की पीठ में तलवार घोंप दी।

बताया जाता है कि घायल अवस्था में भी उन्होंने अनेक शाही सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया तथा अर्जुन गौड़ का कान काट दिया और स्वयं भी वीरगति को प्राप्त हो गये। स्वाभिमानी बल्लू चांपावत ने अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए राव अमरसिंह राठौड़ के शव को आगरा के किले के बाहर पहुंचा दिया।

शाही सेना से मुकाबला करते हुए बल्लू चांपावत, भावसिंह कूंपावत व पं. गिरधर व्यास सहित अनेक योद्धाओं ने केसरिया कर प्राणोत्सर्ग किया। अमर सिंह राठौड़ की मृत्यु 25 जुलाई 1644 में हो गई थी ।

वीर अमरसिंह राठौड़ की नागौर में झड़ा तालाब के किनारे सोलह खंभों की छतरी है।

अमर सिंह राठौड़ को असाधारण शक्ति,स्वाभिमान, इच्छा और स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। वह एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में अमर सिंह राठौर वीरगति को प्राप्त हुए

फ़िल्म निर्देशक राधाकांत ने 1970 में इनके जीवन पर एक फ़िल्म बनाई थी “वीर अमरसिंह राठौड़” । यह फ़िल्म ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट में थी ।

FAQ’s

Que.- अमरसिंह राठौड़ का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

Ans.-अमर सिंह राठौर का जन्म 11 दिसम्बर 1613, मारवाड़ ,राजस्थान में हुआ था।

Que.- अमरसिंह राठौड़ गेट कहाँ स्थित है?

Ans.-आगरा किले के एक द्वार का नाम उनके नाम पर ‘अमर सिंह गेट’ रखा गया जो आगरा में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।

Que.-अमरसिंह राठौड़ की मृत्य कैसे हुई थी?

Ans.-अमर सिंह के साले अर्जुन सिंह ने षड्यंत्र रच के अमर सिंह राठौड़ की धोखे से हत्या कर दी थी। 

Que.-अमरसिंह राठौड़ की मृत्य कब हुई थी?

Ans.-अमर सिंह राठौड़ की मृत्यु 25 जुलाई 1644 में हो गई थी ।

 

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