Rana Hammir Singh

मेवाड़ के उद्धारक राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया का इतिहास

राणा हम्मीर सिंह (Maharana Hammir Singh Sisodia) का परिचय

राजस्थान के मेवाड़ के इतिहास में सिसोदिया वंश में एक से बढ़कर एक वीर सूरमा हुए हैं, जिनमें अगर सबसे पहले किसी का नाम आता है तो वह थे राणा हमीर सिंह (Maharana Hammir Singh Sisodia)।
राणा हमीर सिंह प्रथम 14 वी शताब्दी में राजस्थान के मेवाड़ के वीर योद्धा और असली सिसोदिया शाखा के संस्थापक माने जाते हैं।

मेवाड़ राज्य के इस वीर शासक को ‘विषम घाटी पंचानन’ अर्थात सकंट काल मे सिंह के समान के नाम से जाना जाता है, राणा हम्मीर को विषम घाटी पंचानन की संज्ञा राणा कुम्भाजी ने कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में दी।
कर्नल जेम्स टॉड ने राणा हमीर को प्रबल हिंदू राजा कहा है।
राणा हमीर सिंह का पूरा इतिहास जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।

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राणा हमीर सिंह (Rana Hammir Singh) के जीवन का प्रारंभिक काल

राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) सिसोदा ठिकाने के लक्ष्मण सिंह का पौत्र तथा अरि सिंह प्रथम का पुत्र था।
बताया जाता है राणा लक्ष्मण सिंह के सबसे बड़े पुत्र अरि सिंह ने एक राजपूत महिला उर्मिला से शादी करी थी उन्ही के एक पुत्र हुआ था जिसका नाम था हम्मीर सिंह।

ज़ब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर 1303 में आक्रमण किया था तब चित्तौड़ की घेराबंदी में लक्ष्मण सिंह व उनके सभी 7 पुत्र वीरगति को प्राप्त हो गए थे उस घेराबंदी में अरि सिंह भी वीरगति को प्राप्त हो गया था।
लेकिन लक्ष्मण सिंह का एक पुत्र जीवित रह गया था, जिनका नाम था राणा अजय सिंह जो कि सिसोदा का सामंत बना और हमीर सिंह का पालन पोषण उसी ने किया था।
हमीर अपने समय का वीर साहसी और निर्भीक नवयुवक था, इन्हीं गुणों को देखते हुए राणा अजय सिंह ने अपने पुत्र सज्जन सिंह की जगह हमीर को सिसोदा का सामंत नियुक्त किया।
कहते हैं इस बात से नाराज होकर सज्जन सिंह महाराष्ट्र चला गया बताया जाता है कि महाराज शिवाजी भी उन्हीं की शाखा के थे।

खिलजी ने 1303 विजय के बाद चित्तौड़गढ़ पहले खिजर खां को सौंपा फिर उसके बाद मालदेव सोनगरा चौहान को सौंप दिया था। मालदेव को अलाउद्दीन खिलजी का पूरा समर्थन था इस वजह से अमीर को चित्तौड़ वापस जीतना आसान नहीं लगा उस समय ।
लेकिन जैसे 1320 में खिलजी वंश समाप्त हुआ मालदेव की भी मृत्यु हो गई थी और मालदेव के बाद में नवीर सोनगरा वहां का राजा बना।

सही मौका पाते चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया और और 1326 में सोनगरा को हराकर चित्तौड़ पर अपना कब्जा कर लिया। मेवाड़ की विषम परिस्थितियों के होते हुए भी इन्होंने चित्तौड़ पर विजयश्री प्राप्त की। इस प्रकार 1326 ई. में राणा हम्मीर को पुनः चित्तौड़ प्राप्त हुआ। इसी कारण राणा हम्मीर को विषम घाटी पंचानन के नाम से जाना जाता है।

हम्मीर (Hamir) के बाद जितने भी मेवाड के राजा बने वो सिसोदिया कहलाये और महाराणा लगाने वाले हमीर प्रथम राजा थे।
इसके बाद राणा ने अमीर ने चित्तौड़ में बरबड़ी माता अन्नपूर्णा माता राम मंदिर बनवाया जिसे गुहिल वंश की इष्ट देवी भी कहा जाता है।

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सिंगोली का युद्ध (Battle of Singoli)

राणा हम्मीर (Rana Hamir Singh) के शासनकाल में दिल्ली के सुल्तान मौहम्मद बिन तुगलक ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। सिंगोली नामक स्थान जो उदयपुर के पास एक जगह है वहाँ पर दोनों के बीच युद्ध लड़ा गया जिसे सिंगोली (Singoli) का युद्ध कहा जाता है। जिसमें हम्मीर सिंह ने तुगलक सेना को हराया और मुहम्मद बिन तुगलक को बंदी बना लिया था।

राणा हम्मीर((Rana Hammir Singh) की मृत्यु

प्रबल प्रताप से मेवाड़ का शासन करते हुए राणा हम्मीर की मृत्यु 1364 ई. में चित्तौड़ में हुई थीहम्मीर को मेवाड़ के उद्धारक रूप में जाना जाता है

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