Bhairon Singh Shekhawat

भैरों सिंह शेखावत (बाबोसा) राजस्थान की शान, सियासत के अजातशत्रु

भैरों सिंह शेखावत जी का परिचय (Bhairon Singh Shekhawat)

यूँ तो राजस्थान की ज़मीन पर काफी महान हस्तियों ने जन्म लिया है और इतिहास के पन्नों में उनका नाम अमर भी है, पर उन हस्तियों में एक शख्स ऐसा भी था जिसका नाम भारत की राजनैतिक दुनिया में बड़े सम्मान और आदर से लिया जाता है । वो शक़्स कोई और नहीं हमारे लोकप्रिय  व स्वर्गीय श्री भैरों सिंह शेखावत जी हैं। 

बाबोसा के नाम से मशहूर भैरों सिंह जी का नाम आज भी राजस्थान में बड़े ही सम्मान से लिया जाता है पर क्या आप जानते हैं की उनकी ज़िन्दगी काफी उतार-चढ़ाव से भरी हुई थी, पर उन्होंने कभी भी हार ना मानी।  चाहे मारपीट के चलते नौकरी से निकला जाना हो या फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के उपराष्ट्रपति बनना, भैरों सिंह ने अपने जीवन काल में काफी लोकप्रियता प्राप्त की है।  तो आइये बाबोसा के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं की ओर बढ़ते है और जानते है की कैसा था उनके जीवन का सफर।

स्वर्गीय श्री भैरों सिंह शेखावत जी क़ी जीवनी (Bhairon Singh Shekhawat ki Biograhy) जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़े …

भैरों सिंह जी का जन्म और उनका बचपन (Bhairon Singh Shekhawat’s Birth)

भैरों सिंह का जन्म तत्कालिक जयपुर रियासत के खाचरियावास में 23 अक्टूबर 1923 को हुआ था। यह गाँव अब राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है । इनकी माता का नाम श्रीमती बन्ने कँवर था और पिता का नाम श्री देवी सिंह शेखावत था।  बाबोसा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में प्राप्त की थी और अपनी हाई स्कूल की शिक्षा गाँव से 30 किलोमीटर दूर जोबनेर से प्राप्त की थी। वह हाई स्कूल पैदल ही जाते थे। 

हाई स्कूल करने के पश्चात् उन्होंने जयपुर में स्थित महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया ही था की उनके पिता का स्वर्गवास हो गया । अपने परिवार का भरण- पोषण करने के लिए उन्होंने पढाई छोड़ दी और फलस्वरूप खेती करने लगे। 

मारपीट के चलते पुलिस की नौकरी गंवाना

राजनीति में आने से पहले बाबोसा पुलिस में नौकरी करते थे लेकिन एक हादसे के कारण उनको अपनी नौकरी गँवानी पड़ी। यह किस्सा साल 1947 का है जब वो सीकर में तैनात थे और हरदयाल टॉकीज के मालिक रियासत के पुरोहित जी थे।

एक दिन हरदयाल टॉकीज में 4-5 पुलिस वाले सिनेमा देखने पहुंचे, जिनमें बाबोसा भी शामिल थे।  वहां इनका झगड़ा सिनेमा के मैनेजर से हो गया और उनके साथी पुलिस वालों में से एक ने मैनेजर को थप्पड़ मार दिया । फिर क्या, इस हादसे की शिकायत रावराजा श्री कल्याण सिंह जी तक पहुंची और रावराजा जी ने सीकर के एसपी जय सिंह को तालाब किया और फिर पाँचों पुलिस वालों को तलब किया। रावराजा ने उन पाँचों पुलिस अफसरों की क्लास ली और इसके बाद उन पाँचों पुलिस वालों को इस्तीफा देना पड़ा जिसमें भैरों सिंह जी भी शामिल थे। 

उनके सियासत सफर की शुरुआत

पुलिस की नौकरी छिन जाने के बाद भैरों सिंह जी गाँव में खेती करने लगे। यूँ तो उनका परिवार काफी बड़ा था जिनमें 10 भाई- बहन थे, उनके भाई बिशन सिंह जी संघ से जुड़े थे। बिशन सिंह जी साल 1951 में स्कूल टीचर बन गए और संघ से जुडी गतिविधियों की तरफ ख़ास रूचि नहीं दिखाई। 

पर होनी को कौन टाल सकता है । एक दिन बिशन सिंह जी के घर लाल कृष्ण अडवाणी जी आये जो उस वक़्त राजस्थान में जान संघ का कार्यभार सँभालते थे।  लाल कृष्ण अडवाणी जी चाहते थे की दाता-रामगढ की सीट से संघ की ओर से चुनाव लड़ें पर बिशन सिंह जी ने अपनी नौकरी का हवाला देकर चुनाव लड़ने से मन कर दिया। उन्होंने अपनी जगह अपने भाई भैरों सिंह जी (Bhairon Singh Shekhawat) से चुनाव लड़ने को कहा।  इसी बात से समझ आता है की नियति को होने से कोई नहीं टाल सकता है।  

चुनाव लड़ने के लिए पत्नी ने दिए 10 रुपए

अपने भाई बिशन सिंह जी के आदेश पर भैरों सिंह जी चुनाव लड़ने के लिए राज़ी हो गए और चुनाव लड़ने के लिए उन्हें सीकर जाना था।  उनके सफर की अछि शुरुआत के लिए उनकी धर्मपत्नी श्रीमति सूरज कँवर जी ने उन्हें 10 रुपए का नोट दिया । उस नोट को अपनी जेब में रखकर बाबोसा अपने सियासी सफर पर चल निकले। दाता रामगढ में चुनाव में त्रिकोणीय मुक़ाबला था।  

सन 1952 दाता रामगढ़ के इतिहास के सुनहरे पलों में से एक था क्यूंकि हम सबके चाहते बाबोसा विधानसभा का चुनाव जीत कर विधायक बन गए थे।  उनके बाद कांग्रेस पार्टी के विद्याधर थे।  बाबोसा का सफर यहीं ख़तम नहीं हुआ था।  इस चुनाव के बाद वह लगातार 3 बार और चुनाव जीते और उनकी सफलता की मापदंड का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की वह हर बार अलग-अलग सीटों से विधायक चुने गए । 

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बाबोसा पहुंचे विरोधी उम्मीदवार के घर

साल 1972 में भैरों सिंह जी गाँधी नगर सीट से चुनाव में उतरे थे और इस बार उनके प्रतिद्वंद्वी थे जनार्दन सिंह गहलोत थे। एक दिन भैरों सिंह जी अपने प्रतिद्वंद्वी जनार्दन सिंह गहलोत के घर पहुंच गए और वापस लौटते वक़्त वो जनार्दन से बोले- “घबड़ाओ मत थें, चुनाव थेईं जीत स्यो”। उस दिन मानलो उनके जीवा पे मान लो जैसे सरस्वती जी विराजमान थी क्यूंकि उनका कहा सच निकला। 

 जब चुनाव के नतीजों की घोषणा हुई तब पता चला की भैरों सिंह जी 5167 वोटों से चुनाव हार गए थे। इस चुनाव के बाद दाल 1975 में देश में इमरजेंसी लगी और भैरों सिंह जी को जेल भेजा गया।  पौने दो साल उन्हें जेल से छोड़ा गया और उनके आगमन से सियासत ने नया आयाम छुआ।

भैरों सिंह शेखावत जी मुख्यमंत्री कैसे बने

भैरों सिंह जी का मुख्यम्नत्री बनने का सफर बिलकुल भी आसान ना था।  साल 1977 में राजस्थान में चुनाव हुए और जनता पार्टी को 200 सीटों वाले सूबे से 152 सीटों में जीत मिली थी। लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये थी की मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए क्यूंकि इस पद के लिए 3 उम्मीदवार थे। 

वह तीन उम्मीदवार थे हमारे बाबोसा, मास्टर आदित्येन्द्र और तीसरा धड़ा जनसंघ का था। इस समस्या का समाधान पाने के लिए चुनाव हुआ जिसमें भरों सिंह जी को 110 वोट मिले और मास्टर आदित्येन्द्र को 42 वोट। बहुमत मिलने के कारण बाबोसा को मुख्यमंत्री घोषित किया गया। 

सबसे ख़ास बात यह है की भैरों सिंह जी राजस्थान के ३ बार मुख्यमंत्री बने। सबसे पहली बार वो 22 जून 1977 से 16 फरवरी 1980 तक मुख्यमंत्री रह।  उनके कार्यकाल की अवधि 2 साल 239 दिन की थी।  दूसरी बार वह 4 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक मुख्यमंत्री रहे।

उनके कार्यकाल की अवधि 2 साल 286 दिन की थी। उनका तीसरा कार्यकाल 4 दिसंबर 1993 से शुरू हुआ था और 1 दिसंबर 1998 तक उन्होंने इस पद को संभाला।  इस बार उनके कार्यकाल की अवधि 4 साल 362 की थी।    

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उपराष्ट्रपति भी बने भैरों सिंह जी (Vice-President Bhairon Singh Shekhawat)

भैरों सिंह जी का सफर सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं था । वह साल 2002 में देश के उपराष्ट्रपति भी बने और उन्होंने चुनाव में सुशिल  कुमार शिंदे को बहुमत से हराया था । 750 में से विपक्षी दल को मात्रा 149 वोट मिले थे । साल 2007 में उन्होंने निर्दलयी चुनाव भी लड़ा मगर इस बार वह प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से हार गए।

इस हार के बाद उन्होंने उपराष्ट्रपति के पद को भी त्याग दिया था। 

भैरों सिंह जी शेखावत का एक किस्सा

बात 2006 की है जब भैरों सिंह जी उपराष्ट्रपति थे। भैरों सिंह जी के खास और पूर्व विधायक डॉक्टर मूलसिंह शेखावत के बेटे यशवर्धन सिंह की शादी थी। शादी से पहले ही पूरे झुंझुनूं और पिलानी में चर्चा थी कि इस शादी में भैरों सिंह जी हेलीकॉप्टर से आने वाले हैं क्योंकि मूल सिंह जी तो भैरों सिंह जी के घर परिवार के आदमी हैं। यहां तक कि पार्टी, संगठन और प्रशासन भी भैरों सिंह जी के दौरे को लेकर तैयार थे क्योंकि बहस की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।

सबकी जुबान पर एक ही बात कि डॉक्टर साहब की घर की शादी में भैरों सिंह जी तो आयेंगे ही… डॉक्टर मूल सिंह जी भी भैरों सिंह जी को शादी का निमंत्रण देने पूरे तामझाम के साथ दिल्ली गए थे। साथ में आठ – दस लोग भी थे। शादी का कार्ड हाथ में लेते ही भैरों सिंह जी ने अपने पीए को बुलाकर प्रोग्राम तुरंत फिक्स कर दिया। लेकिन शादी वाले दिन महामहिम उपराष्ट्रपति झुंझुनूं नहीं पधारे।

सब लोग यह देखकर हैरान थे कि आखिर क्या हुआ जो भैरों सिंह जी इस जरूरी शादी में नहीं आए। शादी के बाद जब यशवर्धन सिंह भैरों सिंह जी के ढोक अरज करने गए तब पूरे मामले की पोल खुल गई। लोगों ने शेखावत साहब से पूछा कि आप यश की शादी में क्यों नहीं आए ? तो उन्होंने बताया कि आता कैसे मूल सिंह ने मेरे को जैसा निमंत्रण दिया वैसा निमंत्रण मेरी जिंदगी में कभी नहीं मिला।

हुआ यूं था कि जब डॉक्टर मूल सिंह जी दिल्ली शादी का कार्ड देने गए थे तब चुपचाप वापस भैरों सिंह के पास गए और कहकर आए कि कार्ड देने तो मैं आया हूं लेकिन आप शादी में मत पधारना। क्योंकि आपके तीन हेलीकॉप्टर, पुलिस प्रोटोकॉल, कलेक्टर, एसपी, नेता सब व्यवस्था खराब कर देंगे। मैं आपको संभालूंगा या दूसरे मेहमानों को। और कारण भैरों सिंह जी इच्छा होने के बावजूद भी उस शादी में नहीं पधारे…

उनके अंतिम पल

भैरों सिंह जी (Bhairon Singh Shekhawat) को कैंसर जैसी घातक बीमारी ने जकड लिया था और उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 मई 2010 को जयपुर के सवाई मन सिंह अस्पताल में ली थी। 

भले हीं  बाबोसा आज हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनकी विचारधारा, उनकी सोच आज भी हमारे साथ है। चाहे वो सती प्रथा का बहिष्कार हो या गरीबों को ऊपर बढ़ाने के लिए उनकी अंत्योदय योजना की सोच, भैरों सिंह ने हमेशा सबके लिए ही सोचा था और आज उनकी इसी सोच और कोशिशों के कारण हमारा प्रदेश आज आसमान की बुलंदियों को छू रहा है। नाज़ है हमे राजस्थान की मिट्टी पर क्यूंकि इस पर भैरों जी जैसे महात्मा ने जन्म लिया है।     

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