महाराजा हरि सिंह का परिचय (Maharaja Hari Singh History)
महाराजा हरि सिंह(Maharaja Hari Singh) जम्मू-कश्मीर रियासत के अंतिम शासक थे।हरि सिंह एक ऐसे राजपूत राजा जो अपना अलग देश चाहते थे । महाराजा हरि सिंह एक दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने अपने राज्य में कई सुधार और विकास की पहल की।
बता दें कि 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद, महाराजा हरि सिंह चाहते थे कि जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हो. उन्होंने अपने राज्य को पाकिस्तानी सेना के आक्रमण से बचाने के लिए भारत सरकार से मदद मांगी थी।
जिसके बाद उन्हें भारतीय सैनिकों का समर्थन प्राप्त हुआ। उनके शासनकाल को कई महत्वपूर्ण घटनाओं द्वारा चिह्नित किया गया था, जो अंततः भारतीय संघ में राज्य के एकीकरण का कारण बना।
महाराजा हरि सिंह का पूरा इतिहास (Maharaja Hari Singh History in Hindi) पढ़ने के लिए लेख को अंत तक पढ़े….
महाराजा हरि सिंह का जन्म व प्रारंभिक जीवन (Maharaja Hari Singh birthday)
महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) का जन्म 23 सितंबर, 1895 को जम्मू और कश्मीर की रियासत में हुआ ।
महाराजा हरि सिंह के पिता का नाम अमर सिंह और माता का नाम भोटियाली छिब था। वह राजा अमर सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे, जो उस समय जम्मू-कश्मीर के शासक थे। हरि सिंह ने अपनी शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज से प्राप्त की और बाद में देहरादून में इंपीरियल कैडेट कोर में अध्ययन करने चले गए।
1923 में, वह अपने पिता की मृत्यु के बाद जम्मू-कश्मीर के सिंहासन पर बैठे। उन्हें 1915 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा राज्य सेना का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया गया था अपने चाचा की मृत्यु के बाद, 23 सितंबर 1923 को हरि सिंह जम्मू और कश्मीर के नए महाराजा बने थे। ताजपोशी के बाद जिस तरह की घोषणाएँ उन्होंने कीं, उन्हें सचमुच क्रांतिकारी कहा जा सकता है.।
जम्मू-कश्मीर सरकार के मंत्री रहे जॉर्ज एडर्वड वेक़फील्ड के हवाले से एमवाइ सर्राफ़ ने अपनी किताब ‘कश्मीरी फाइट्स फॉर फ्रीडम’ में बताते हैं कि अपने शासन के शुरुआती दौर में वह चमचागिरी के इतने ख़िलाफ़ थे कि उन्होंने एक सालाना ख़िताब देना तय किया था, जिसका नाम ‘खुशामदी टट्टू’ अवार्ड था, जिसके तहत बंद दरबार में हर साल “सबसे बड़े चमचे को” टट्टू की प्रतिमा दी जाती थी.
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महाराजा हरि सिंह की शादी (Maharaja Hari Singh Marriage)
बताया जाता है क़ी महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) ने चार शादीया क़ी थी उनकी पहली पत्नी धर्मपुर रानी श्री लाल कुंवेरबा साहिबा थी जिनके साथ 7 मई 1913 में उनकी प्रथम शादी हुई। जिनकी साल 1915 में गर्भावस्था के दौरान मृत्यु हो गई। उनकी दूसरी पत्नी चम्बा रानी साहिबा थी जिनसे उन्होंने 8 नवंबर 1915 में शादी की, जिनकी 31 जनवरी 1920 को मृत्यु हो गई ।
तीसरी पत्नी महारानी धन्वन्त कुवेरी बैजी साहिबा थी जिनसे उन्होंने धरम्पुर में 30 अप्रैल 1923 को शादी की और बाद ने उनकी भी मृत्यु हो गई।। चौथी और उनकी पत्नी कानगरा की महारानी तारा देवी साहिबा थी जिनसे उनहे एक पुत्र युवराज कर्ण सिंह था।
जम्मू कश्मीर का भारत में विलय
भारतीय इतिहास में, महाराजा हरी सिंह का नाम अमर है। उन्होंने अपने राज्य को भारत से जोड़ने का निर्णय लिया था, जो एक बड़ी और बहुत महत्वपूर्ण घटना थी। उन्होंने इस निर्णय के लिए बड़ी मेहनत और संघर्ष किया था।
बताया जाता है क़ी महाराजा हरी सिंह के दादा महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू कश्मीर को अंग्रेजो से 75 लाख नानकशाही रुपय में खरीदा था।
1947 में भारत स्वतंत्र होने के बाद हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर को भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में से किसी में भी शामिल करने से इंकार कर दिया था लेकिन बताया जाता है कि इसके बाद पाकिस्तान ने कबायलीओ की आड़ में पाकिस्तानी सेना भेज दी जिनका मकसद था कि कश्मीर पर कब्जा करना है।
महाराजा युद्ध से पीछे हटे नहीं लेकिन वह जल्द ही समझ गए कि जो सेना वह बहुत कम है पाकिस्तान से उसका मुकाबला करना संभव नहीं है इसके बाद महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई थी और भारत सरकार बिना विलय के सहायता भेजने को राजी नहीं था तो 26 अक्टूबर 1947 को 2 महीने की आजादी के के बाद महाराजा हरी सिंह ने आखिरकार भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया और आजाद डोगरीस्तान का स्वपन उनका हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गया था।
महाराजा हरि सिंह के भारत में शामिल होने के फैसले का आबादी के कुछ वर्गों ने विरोध किया, जिन्होंने एक स्वतंत्र जम्मू और कश्मीर की मांग की।
‘द ट्रेजेडी ऑफ़ कश्मीर’ में इतिहासकार एचएल सक्सेना बताते हैं कि अपने पहले संबोधन में महाराजा हरि सिंह ने कहा, “मैं एक हिन्दू हूँ लेकिन अपनी जनता के शासक के रूप में मेरा एक ही धर्म है-न्याय. वह ईद के आयोजनों में भी शामिल हुए और 1928 में जब श्रीनगर शहर बाढ़ में डूब गया तो वह ख़ुद दौरे पर निकले.”
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महाराजा हरि सिंह जी के जन्मदिन पर सरकारी अवकाश
23 सितंबर को महाराजा हरि सिंह(Maharaja Hari Singh) जी के जन्मदिन को सरकारी अवकाश घोषित करने की मांग पिछले वर्ष सरकार ने स्वीकार कर ली थी । जम्मू कश्मीर सरकार ने महाराजा के जन्मदिन पर छुट्टी घोषित कर दी थी । पिछले लंबे समय से जम्मू के लोग महाराजा हरि सिंह जी के जन्मदिन को सरकारी अवकाश घोषित करने को लेकर संघर्ष कर रहे थे।
महाराजा हरि सिंह(Maharaja Hari Singh Death) की मृत्यु
भारत के साथ विलय पत्र पर पर हस्ताक्षर करने के बाद, हरि सिंह को जम्मू और कश्मीर छोड़ना पड़ा और उन्होंने मुंबई में अपने जीवन के आखिरी पल बिताए । चौदह साल के निर्वासन के बाद 26 अप्रैल 1961 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी इच्छा के अनुसार, उनकी राख को जम्मू लाया गया और पूरे जम्मू-कश्मीर में फैलाया गया, और जम्मू में तवी नदी में उनकी राख को प्रवाहित किया गया।
बता दें कि जम्मू में महाराजा की एक भी प्रतिमा नहीं थी अप्रैल 2012 में डॉ. कर्ण सिंह, उनके बेटे अजातशत्रु और गुलाम नबी आजाद ने प्रतिमा का अनावरण किया था।