maharana raj singh photo

मेवाड़ के महाराणा राज सिंह प्रथम (1652 – 1680) का इतिहास

महाराणा राज सिंह प्रथम (Maharana Raj Singh I) का परिचय

महाराणा राज सिंह प्रथम (Maharana Raj Singh I), मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के एक महान शासक थे। जिन्होंने मेवाड़ पर 1652 से लेकर 1680 ईसवी तक राज किया था।
महाराणा राज सिंह (Maharana Raj Singh) एक अत्यंत साहसी और प्रभावशाली योद्धा थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्धों में अपनी बहादुरी का परिचय दिया।
वर्तमान राजसमंद जिले के संस्थापक और धर्म, कला प्रेमी महाराणा राजसिंह का नाम आज भी इतिहास में बहुत ही इज्जत के साथ लिया जाता है।

इस लेख में हम महाराणा राज सिंह के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे जो आपको उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों, युद्धों और साम्राज्य विस्तार के बारे में जानने में मदद करेगा।

महाराणा राज सिंह (Maharana Raj Singh) का जन्म और प्रारंभिक जीवन

महाराणा राज सिंह (Maharana Raj Singh) का जन्म 24 सितंबर 1629 को राजनगर (कांकरोली / राजसमंद) में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराणा जगत सिंह जी और मां का नाम महारानी मेडतणीजी है।
बताया जाता है कि मात्र 23 वर्ष की छोटी उम्र में ही उनका राज्याभिषेक हो गया था। वे न केवल एक कलाप्रेमी, जन जन के चहेते, वीर और दानी पुरुष थे बल्कि वे धर्मनिष्ठ, प्रजापालक और बहुत कुशल शासन संचालन करने वाले भी थे।
उन्होंने युवाओं के बीच योग्यताओं का विकास करने के लिए विशेष महत्व दिया और अद्वितीय योद्धाओं का निर्माण किया।
उनके राज्यकाल के समय वहाँ के लोगों को उनकी दानवीरता के बारे में जानने का मौका मिला था। उन्होने कई बार सोने चांदी, अनमोल धातुएं, रत्नादि के तुलादान करवाये और योग्य लोगों को सम्मानित किया था।

आप इसे भी पढ़ सकते हैं : मेवाड़ के राणा कुंभा (1433-1468 ई.) का इतिहास

शाहजहाँ और महाराणा राजसिंह (Maharana Raj Singh)

महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारम्भ की गई चितोड़ के किले की मरम्मत का कार्य राज सिंह ने जारी रखा। संधि की शर्तो का उल्लघन कर राजसिंह द्वारा चितौड़ दुर्ग की मरम्मत कराने पर बादशाह शाहजहाँ ने सदुल्लाखाँ वजीर को 30000 की सेना लेकर चितौड़ दुर्ग की मरम्मत ढहाने के लिए भेजा। सदुल्लाखाँ 8 नवम्बर, 1653 को चितौड़ पहुंच दुर्ग के कंगूरे व बुर्जे हटाकर 15 दिन बाद वहा से चला गया।

एक बार 1657 ईस्वी में शाहजहाँ के बीमार होने पर बादशाह के पुत्रों में आपस में बादशाह की गद्दी प्राप्त करने के लिए प्रयासों में तेजी आ गई।
तो बताया जाता है कि औरंगजेब ने पत्र लिखकर राजसिंह से पूछा था कि आप किसका साथ दोगे? जवाब में राज सिंह ने लिखा कि मैं अभी किसी के साथ नहीं हूं ।

फिर इस चीज का फायदा उठाते हुए राज सिंह ने अपने राज्य में “टीका दौड़” उत्सव का आरंभ करवा दिया और इस उत्सव के बहाने राणा ने 1658 ईसवी में अपने राज्य के तथा राज्य के बाहर मुगल थानों पर हमले आरंभ करवा दिए।
टीका दौड़ अभियान में राणा को लाखों की संपत्ति मिली और वह अपने खोए भागों को अपने राज्य में सम्मिलित कर सका । औरंगजेब ने भी शासक बनते ही राणा के पद को 6000 जात और 6000 सवार बढ़ा दिया।

महाराणा राजसिंह (Maharana Raj Singh) का राजकुमारी चारूमति से विवाह

चारुमति किशनगढ़ की राजकुमारी थी। जिनके लिए बताया जाता है कि वह बेहद सुंदर थी । इसी सुंदरता को सुनकर एक बार औरंगजेब ने किशनगढ़ के राजा मानसिंह के पास चारुमति से विवाह करने का फरमान भेजा।

जिसे मानसिंह ने यह सोचकर स्वीकार कर लिया कि अगर युद्ध किया तो जनता का भारी नुकसान होगा। लेकिन राजकुमारी चारुमति को यह विवाह बिल्कुल स्वीकार नहीं था।
इसलिए उन्होंने मेवाड़ के महाराणा राज सिंह के पास पत्र लिखा और शादी करने के लिए अनुरोध किया। महाराणा राजसिंह हिंदू राजकुमारी का मान रखने के लिए उनसे शादी करने किशनगढ़ पहुंच गए। वो भी औरंगजेब के विरोध की परवाह किए बिना।

औरंगजेब के लिए यह घटना बहुत अपमानजनक थी। इससे नाराज होकर औरंगजेब ने राज सिंह से बहुत सारे राज्य छीन लिए थे।

आप इसे भी पढ़ सकते हैं : वीर दुर्गादास राठौड़: महान राजपूत योद्धा

हाड़ी रानी (सहल कँवर) का इतिहास (history of hadi rani)

हाड़ी रानी हाड़ा चौहान वंश की राजकुमारी सहल कंवर सलूंबर के युवा सामंत रतन सिंह चुंडावत की नवविवाहिता पत्नी थी । रतन सिंह चुंडावत मेवाड़ के महाराणा राज सिंह का सामंत था उस समय।
महाराणा राज सिंह का विवाह चारुमति से होने वाला था उसी समय औरंगजेब अपनी सेना लेकर मेवाड़ की ओर बढ़ा। विवाह होने तक मुगल सेना को रोकने की जिम्मेदारी महाराणा राज सिंह ने नवविवाहित राव रतन सिंह चुंडावत को दी ।
बताया जाता है कि उस समय रतन सिंह के विवाह को मात्र 1 दिन ही हुआ था । जब वह युद्ध के मैदान में जाने के लिए तैयार हुआ और महल से विदा हो रहे थे उसी समय उनको अपनी रानी की याद सताने लगी।
चुंडावत ने अपने सैनिक को भेजकर रानी से निशानी (सैनाणी) लाने के लिए भेजा ताकि युद्ध के मैदान में रानी की याद सताए तब उस निशानी को देखकर अपने मन को तसल्ली दे सके ।

जब सेवक हाड़ी रानी के पास गया और कहा कि राजा ने आपकी कोई निशानी लाने के लिए कहा है, तब हाड़ी रानी ने सोचा कि मेरी याद के कारण वह अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पाएंगे और मैं इस कर्तव्य में बाधक बनने का पाप अपने सर पर नहीं ले सकती।

बताया जाता है कि उसी वक्त हाड़ी रानी ने सेवक के हाथ से तलवार लेकर अपना सर काट डाला। सैनिक ने रानी का कटा हुआ सर थाल को में रखा और चुंडावत को भेंट किया तो यह देखकर चुंडावत की भुजाएं फड़क उठती है।

ऐसा भी बताया जाता है कि चुंडावत ने उस सर अपने गले में बांधकर शत्रु दल पर ऐसे टूट पड़े की औरंगजेब की सेना को जरा भी आगे नहीं बढ़ने दिया। रतन सिंह चुंडावत इस युद्ध में विजय तो रहे लेकिन वीरगति को प्राप्त हो गए।
मेघराज मुकुल ने हाड़ी रानी की कविता लिखी “चुण्डावत मांगी सैनाणी, सिर काट दे दियो क्षत्राणी” इसका अर्थ है कि चुंडावत ने एक निशानी मांगी थी हाड़ी रानी ने निशानी के रूप में अपना सर काट के दे दिया था।

राजस्थान पुलिस ने ‘ हाड़ी रानी महिला बटालियन’ नामक एक महिला बटालियन का गठन किया है।

राज सिंह का औरंगजेब की जजिया कर व मंदिर तोड़ो नीति का विरोध

2 अप्रैल 1679 ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया इस कर से साधारण से साधारण हिंदू नागरिक की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा।
जजिया के संबंध में ऐसी मान्यता है कि जब औरंगजेब ने इस कर को हिंदुओं पर लगाया तो महाराणा राज सिंह ने एक पत्र के द्वारा इसका साफ तौर पर विरोध किया है।

इस पत्र  के बारे में कई अलग-अलग भ्रान्तिया है इस संबंध में औरमे का विचार है कि यह पत्र जोधपुर के राजा जसवंत सिंह ने लिखा था। लेकिन जसवंत सिंह की मृत्यु 28 नवंबर 1678 को ही हो गई थी और जजिया कर उसके 4 माह बाद लगाया गया था 1679 में।
डॉ ओझा का कहना है कि यदि कोई जजिया के विरोध में पत्र लिख सकता था तो वह राज सिंह ही हो सकता है।

औरंगजेब जो धर्म तथा विचारों से कट्टर मुसलमान था तो उसने धीरे-धीरे ऐसे ऐसे काम करने प्रारंभ किए जिससे उसका धर्म और ज्यादा मजबूत हो इसी क्रम में उसने मंदिर तोड़ो अभियान शुरू किया और अपने दरबार में नाच गाना भी बंद कर दिया था 1668 ईस्वी में। डॉक्टर ओझा ने लिखा है कि इन नियमों के प्रचलन से राज सिंह ने औरंगजेब का विरोध करना शुरू कर दिया।
महाराणा राज सिंह जी एक महान इश्वर भक्त भी थे द्धारिकाधीष जी और श्रीनाथ जी के मेवाड में आगमन के समय स्वयं पालकी को उन्होने कांधा दिया और स्वागत किया, जिससे हमें उनकी धर्मनिष्ठा के बारे में पता लगता है | महाराणा राज सिंहजी ने बहुत से लोगों को अपने शासन काल में आश्रय दिया, उन्हे दूसरे आक्रमणकारी लोगों से बचाया व सम्मान पुर्वक जीने का अवसर दिया |

आप इसे भी पढ़ सकते हैं : कृष्ण भक्त मीरा बाई का जीवन परिचय 

राजसमंद झील का निर्माण

राज सिंह ने 1676 में कांकरोली में प्रसिद्ध राजसमंद झील का भी निर्माण करवाया था। जहाँ भारत की स्वतंत्रता से पहले समुद्री विमान उतरते थे।
उन्होंने राज प्रशस्ति काव्य का निर्माण का आदेश दिया, जिसे बाद में झील के स्तंभों पर उकेरा गया। इस झील को राजसमुद्र के नाम से भी जाना जाता है।

राजप्रशस्ति में मेवाड़ का प्रमाणिक इतिहास और ऐतिहासिक मुगल मेवाड़ संधि 1615 का उल्लेख मिलता है. इस प्रशस्ति में मेवाड़ के शासकों की तकनीकी योग्यता की जानकारी मिलती हैतथा इस झील के उत्तरी किनारे नौ चौकी नामक स्थान पर राज प्रशस्ति नामक शिलालेख लगवाया।
झील ने किसानों को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराया जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई और अकाल प्रभावित क्षेत्रों को भी राहत मिली।

महाराणा राजसिंह की मृत्यु

महाराणा राजसिंह एक बहुत ही बहादुर, साहसी और कुशल प्रशासक थे, वे औरंगजेब से अंत तक लड़ना चाहते थे और अपनी प्रजा की रक्षा करना चाहते थे।
राणा राजसिंह की मृत्यु ओडा नामक ग्राम में उस समय हुई थी जब वे औरंगजेब के साथ एक लड़ाई में रात्री विश्राम कर रहे थे। ओढ़ा गाँव में भोजन में किसी के द्वारा भोजन में विष मिला देने के कारण अचानक महाराणा राजसिंह की मृत्यु  22 अक्टूबर, 1680 ई. को हो गयी थी

बताया जाता है कि यदि महाराणा का देहान्त बीच में न होता तो संभव था कि मेवाड़ और मारवाड़ के सम्मिलित सैन्य द्वारा बादशाह पूर्ण रूप से पराजित होता ।

राज सिंह ने उदयपुर में अंबा माता का मंदिर बनवाया । राज सिंह की पत्नी रामसर दे द्वारा जया बावड़ी ((त्रिमुखी बावड़ी ) देबारी बनवाई।

मेवाड़ के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है और उनकी कार्यों ने एक उत्कृष्ट साम्राज्य की स्थापना की। महाराणा राज सिंह का इतिहास हमेशा भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और गर्व के साथ स्थान रखेगा।

महाराणा राज सिंह से जुड़े कुछ सवाल उत्तर

सवाल:- राजसमंद झील पर बनी राज प्रशस्ति क्या है?

उत्तर:- राजसमंद झील पर राज सिंह ने संस्कृत भाषा में 25 शिलालेखों पर रणछोड़ भट्ट के द्वारा प्रस्तुति लिखवाई थी। इसमें मेवाड़ का इतिहास है। यह विश्व में सबसे बड़ी प्रशस्ति है ।
सवाल:-राजसमंद किसने बसाया था?

उत्तर: राज सिंह ने राजसमंद  बसाया था।

सवाल:- हाडी रानी का स्मारक कहां है?

उत्तर: हाडी रानी का स्मारक सलूंबर में है ।

सवाल:-महाराणा राज सिंह (Maharana Raj Singh) का जन्म कब हुआ ?

उत्तर: महाराणा राज सिंह (Maharana Raj Singh) का जन्म 24 सितंबर 1629 को राजनगर (कांकरोली / राजसमंद) में हुआ था।

सवाल:- महाराणा राजसिंह (Maharana Raj Singh) की मृत्यु कब हुई?

उत्तर:ओढ़ा गाँव में भोजन में किसी के द्वारा भोजन में विष मिला देने के कारण अचानक महाराणा राजसिंह की मृत्यु  22 अक्टूबर, 1680 ई. को हो गयी थी।

सवाल:- राजसमंद झील का निर्माण किसने करवाया
उत्तर: राज सिंह ने राजसमंद झील का निर्माण किसने करवाया

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top