राजा मानसिंह प्रथम (Raja Man Singh-I) का परिचय
राजस्थान के इतिहास में कई वीर महानायकों ने अपने वीरगाथाओं से सबको प्रेरित किया है। इनमें से एक महानायक थे ‘राजा मानसिंह प्रथम’।
मानसिंह (Man Singh-I), राजस्थान के आमेर के कच्छवाहा राजपूत राजा थे, जिन्होंने 1589 ईस्वी से 1614 ईस्वी तक राज किया था। उन्हें ‘मान सिंह प्रथम’ के नाम से भी जाना जाता है।
मानसिंह को न्यायप्रिय और धार्मिक शासक के रूप में भी याद किया जाता है। ऐसा हिंदू वीर योद्धा जिसने सबसे ज्यादा मंदिरों का निर्माण करवाया।
मानसिंह अपने वंश की परंपरा के अनुसार हिंदू धर्म में बहुत विश्वास रखता था हिंदू धर्म में उसकी इतनी श्रद्धा थी कि उसने अकबर के कहने पर भी दीन ए इलाही क़ी सदस्यता स्वीकार नहीं करी थी’।
बताया जाता है क़ी मुंगेर के शाह दौलत नामी संत के कहने पर भी मानसिंह ने इस्लाम को भी कभी स्वीकार नहीं करा था।
मान सिंह (Man Singh-I) ने काबुल , बल्ख , बुखारा , बंगाल और मध्य और दक्षिणी भारत में महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ लड़ीं. वह राजपूतों और मुगलों दोनों की युद्ध रणनीति से अच्छी तरह वाकिफ था। उन्हें आमतौर पर अकबर के शाही दरबार के नवरत्नों में से एक माना जाता था।
संत दादू मानसिंह के समकालीन थे। रामगढ़ जमुआरामगढ निर्माण 1612 में मान सिंह ने किया।
इतिहासकार बताते हैं कि जयपुर रियासत के शासक भगवान श्री राम के बेटे कुश के वंशज हैं। राम राज्य में सफेद रंग का राजकीय ध्वज रहा था, जिस पर कचनार का पेड़ भी अंकित था।
यही सफेद रंग की पताका जयपुर राजघराने में महाराजा मानसिंह प्रथम के शासन काल में बदल कर पचरंगी पताका बन गई। सिटी पैलेस भवन और पूर्व राजघरानों के अन्य शासकीय भवनों पर आज भी यही पचरंगी झंडा फहराया जाता है।
मान सिंह प्रथम (Raja Man Singh-I) का जन्म व प्रारंभिक जीवन
मानसिंह प्रथम (Raja Man Singh-I) का जन्म 21 दिसम्बर 1550 ईस्वी को आमेर में कच्छवाहा में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवन्त दास माता का नाम भगवती था और दादा का नाम राजा भारमल था।
निजामुद्दीन फरिश्ता बदायूनी मान सिंह के पिता का नाम भगवानदास लिखते हैं और अबुल फजल भगवंत दास लिखते हैं।
मानसिंह ने बचपन से ही शस्त्रच लाने का अभ्यास किया और उनके मन में एक बड़ा योद्धा बनने की उत्सुकता थी।
अकबरनामा के अनुसार कुंवर मानसिंह (Man Singh) अपने 12 बरस की उम्र से ही अर्थात 1562 ईस्वी में ही मुग़ल सेवा में चले गए थे अकबर क़ी सेना में अच्छा सैन्य प्रशिक्षण लेकर अपने आपको परिपकव योद्धा बना लिया था।
मानसिंह सर्वप्रथम अकबर व राजा भगवन्त दास के साथ 1569 ईस्वी में रणथंभौर अभियान पर गए थे
अपने पिता राजा भगवन्त दास क़ी मृत्यु के बाद 1589 ईस्वी में इन्होंने आमेर का शासन सँभाला। बादशाह अकबर ने मानसिंह को ‘फर्जन्द’ व ‘मिर्जा राजा’ की उपाधियां प्रदान की तथा उन्हें 7000 की मनसब दी थी , जो क़ी अकबर के दरबार में सबसे अधिक थी।
सरनाल के युद्ध में ने विशेष ख्याति प्राप्त करी थी अप्रैल 1573 में डूंगरपुर के शासक आसकर्ण को हराया था व बाँसवाड़ा के शासक रावल प्रताप सिंह को अकबर की अधीनता में लिया।
फिर यही से वो महाराणा प्रताप सिंह से अकबर क़ी सन्धि करवाने के लिए उदयपुर गए थे लेकिन वो महाराणा को अधीनता स्वीकार करवा नहीं पाए ।
अकबर ने महाराणा प्रताप सिंह के विरुद्ध राजा मानसिंह (Man Singh) के नेतृत्व में विशाल शाही सेना को 3 अप्रैल 1576 को अजमेर से मेवाड़ के लिए रवाना किया । 21 जून 1576 को प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।
अकबर ने इस युद्ध के बाद मानसिंह की सूबेदारी 7000 से घटाकर 5000 कर दी थी ।
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उत्तर पश्चिम क्षेत्र में मान सिंह व काबुल विजय
मुगल साम्राज्य के उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रांत में अफगानों व रोशनियाओं ने उत्पात मचा रखा था। मानसिंह ने अफगान रोशनिया व मिर्ज़ा हकीम के विद्रोह को वहां दबाया । वहाँ 1580-86 तक रहा और लाहौर क़ी जिम्मेदारी भी संभाली ।
1581 में मानसिंह ने काबुल के मिर्ज़ा हाकिम को हराया था । 1585 में जब मिर्जा हकीम की मृत्यु हुई तब वहां ग्रह कलह क्योंकि उनके उनके पुत्र अलपव्यस्क होने के कारण स्थानीय सामंतों ने वहां पर अधिकार कर लिया ।
“मात सुणावै बालकां, खौफनाक रणगाथ।
काबुल भूली नहं अजै, बो खाण्डो बे हाथ।”
जिसके बाद मान सिंह ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए का बल पर अधिकार कर लिया और वहां के जनप्रिय हो गए ।
मिर्जा राजा मानसिंह ने काबुल में खूंखार कबीलों को हराकर हासिल किए पांच रंग के झंडे 18 नवंबर 1727 को स्थापित , जयपुर शहर में जयपुर राजघराने के राजकीय पचरंगी ध्वज की मिर्जा राजा मानसिंह के शौर्य, वर्चस्व, साहस और वीरता का प्रतीक है।
ब्लू पॉटरी
ब्लू पॉटरी को मानसिंह लाहौर से लेकर आए थे। लाहौर में ब्लू पॉटरी पर्शिया ईरान से आई थी।
वैसे ब्लू पॉटरी का स्वर्ण काल रामसिंह द्वितीय का समय माना जाता है।
नोट:- ब्लू पॉटरी को प्रसिद्धि राजस्थान के कृपाल सिंह ने दिलवाई थी।
बिहार सूबेदारी
बादशाह अकबर द्वारा दिसंबर 1587 में मानसिंह को बिहार की सूबेदारी दी गई । इन्होंने गिधोर के राजा पूरनमल को हराया । उसके बाद खड़कपुर के संग्राम सिंह को हराकर मुगल अधिपत्य स्थापित किया ।
मानसिंह का राज्याभिषेक भी बिहार में इसी समय हुआ था। शाही दरबार में इतना उच्च पद उस समय तक किसी अन्य हिन्दू शासक को प्राप्त नहीं था।
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उड़ीसा विजय
मानसिंह ने 1592 ई. में उड़ीसा के अफगान शासक कतलू खाँ व उसके पुत्र नासिर खाँ को हराकर उड़ीसा को मुगल साम्राज्य का अंग बनाया। अकबर ने इस विजय के बाद मानसिंह को बिहार के अतिरिक्त बंगाल का सूबेदार भी बनाया।
उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर जो हिंदुओ के प्रमुख तीर्थ स्थल में से एक हैं , अफगान शासकों ने इस पर आक्रमण करके इसको ध्वस्त करने का प्रयास किया। लेकिन आमेर के धर्मरक्षक राजा मानसिंह आमेर ने अफगानो पर ऐसा वीभत्स आक्रमण किया की उड़ीसा से अफगानों का नामोनिशान मीटा दिया था।
बंगाल की सूबेदारी
बंगाल की सूबेदारी सन् 1594 ई. में सम्राट अकबर ने मानसिंह को बंगाल की सूबेदारी दी। सर्वप्रथम मानसिंह ने सूबे की राजधानी टण्डा से हटाकर राजमहल की, जिसकी सामारिक स्थिति व जलवायु अधिक अच्छी थी।
बंगाल को तीन भागों में बांटा:- 1.वीर भूमि 2. मान भूमि 3.सिंह भूमि ।
मानसिंह तीन बार बंगाल सूबेदार रहा। उसने वहाँ ‘अकबर नगर’ जिसे राजमहल कहते हैं, बसाया व बिहार में मानपुरा नगर बसाया।
1596 में कूचबिहार लक्ष्मी नारायण को मानसिंह ने हराया वह उसकी पुत्री से विवाह करा।
पूर्वी बंगाल में विद्रोह हुआ था जिस विद्रोह में ईशा खां, सुलेमान खां व केदार राय को मानसिंह ने हरा दिया था।
राजा मानसिंह ने पुर्व बंगाल के राजा केदार को पराजित कर मुगल शासन के अधीन किया । राजा केदार से वे 1604 ईसवी में शिलामाता की मूर्ति लाये तथा उसे आमेर के महलों में प्रतिष्ठित किया ।
मानसिंह ने बंगाल की देखरेख स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण थोड़े दिन अजमेर रहकर भी की थी।
अकबर की के बाद मानसिंह का महत्व जहाँगीर के समय कम हो गया। इसी कारण सेराजा मानसिंह ने अकबर की मृत्यु के बाद जहाँगीर की जगह खुसरो को बादशाह बनाने का समर्थन किया था।
मानसिंह का स्थापत्य
🔸मानसिंह ने बैरकपुर पटना में भवानी शंकर मंदिर बनवाया।
🔸बिहार सुभेदारी समय रोहतासगढ़ महल बिहार में बनवाया।
🔸मानसी की पत्नी कनकावती ने जगत सिंह की याद में जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया कहा जाता है कि इसमें कृष्ण की वह मूर्ति है जिसकी बचपन में मीरा पूजा करती थी। जगत शिरोमणि मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है।
🔸मानसिंह बंगाल शासक के दार से शिला माता मूर्ति लेकर आया। शिला माता कछवाओ की आराध्य देवी है जो जो कि जयपुर के जलेब चौक में स्थित है।
🔸वृंदावन में मानसिंह ने गोविंद देव मंदिर बनवाया, जिसकी मूर्ति जयसिंह के समय जयपुर लाई गई।
🔸आमेर के राज प्रसाद महल बनवाएं।
🔸मान सिंह ने पुष्कर में मान पैलेस बनवाया। पुष्कर की यात्रा के दौरान जयपुर और शाही परिवार के आगंतुकों के लिए महल का उपयोग एक निवासी के रूप में किया गया था।
🔸मानसिंह ने बहराइच में पंच महल बनवाया यहां जिया भरत समय अकबर ठहरता था।
जिस पांच छतरीयों वाला महल कहा जाता है।
Note :-मानसिंह दरबारी मुरारी दास ने मान प्रकाश लिखा।
पुंडरीक विट्ठल ने राग माला व राग मंजरी लिखा।
राजा मानसिंह की मृत्यु
अकबर की मृत्यु के बाद सम्राट जहाँगीर से आमेर के राजा मानसिंह के संबंध ज्यादा सही नहीं रहे । वह उसे कभी बंगाल तो कभी दक्षिण भारत भेजता रहा।
1611 ई. में मानसिंह को सम्राट जहाँगीर द्वारा दक्षिण में अहमदनगर अभियान पर भेजा गया।
दक्षिण में रहते हुए एलिचपुर (महाराष्ट्र) में 17 जुलाई, 1614 (कुछ पुस्तकों में 6 जुलाई, 1614 ) को राजा मानसिंह की मृत्यु हो गई।
महाराजा मानसिंह के बाद उसके बड़े पुत्र स्व. जगतसिंह के पुत्र महासिंह आमेर की गद्दी के उत्तराधिकारी थे, परन्तु बादशाह जहाँगीर ने राजगद्दी का उत्तराधिकारी इसे न मान मानसिंह के पुत्र भावसिंह जो पहले से जहाँगीर की सेवा में था, को आमेर के राजसिंहासन की वारिस नियुक्त किया। अतः मानसिंह के बाद मिर्जाराजा भावसिंह 1614 ई. में आमेर का राजा बना।
मान सिंह के लिए कहा जाता है क़ी ,
“माई ऐहड़ा पूत जण, जेहड़ा मान मरद
समंदर खांडो पखारियों, काबुल बांधी हद।
जात जात गुण अधिक हो, सुनी न अजहुँ कान
राघव वारिधि वांधियो, हेल्या मारयो मान।”