रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का परिचय
भारतीय इतिहास में कई वीरांगनाओ ने अपने साहस, शौर्य और पराक्रम के माध्यम से महान कार्य किए हैं। इनमें से एक नाम है – रानी दुर्गावती।
रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) भारत की एक प्रसिद्ध चन्देल क्षत्राणी वीरांगना थीं। वो 1550 से 1564 तक गोंडवाना साम्राज्य की शासक महारानी थीं।
इन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद गोंडवाना का शासन संभाला था, अपने 15 साल के शासन में अपने शौर्य के दम पर इन्होंने गोंडवाना को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। रानी दुर्गावती जी की जयंती को 5 अक्टूबर मनाई जाती है?
रानी दुर्गावती की पूरी कहानी हमें उनके अद्भुत साहस, समर्पण और देशभक्ति का एहसास कराती है। उनके जीवन में संघर्षों और परिश्रम के माध्यम से वे एक महिला के रूप में अपनी सीमाएं छोड़कर आगे बढ़ीं और अपने देश की सेवा की।
रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का जन्म व प्रारंभिक जीवन
रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालंजर के किले में (बांदा, यूपी) चंदेल वंश में हुआ था। उनका जन्म अष्ठमी के दिन हुवा था इसलिए पिता ने इनका नाम माता दुर्गा के नाम पर दुर्गावती रखा था ।
रानी दुर्गावती के पिता का नाम कीरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) और माता का नाम महोबा था। दुर्गावती अपने पिता की इकलौती संतान थी।
रानी दुर्गावती बचपन से ही योद्धा बनना चाहती थी, उन्होंने बचपन में हि तीरंदाजी, तलवारबाजी और शस्त्र चलाने सिख लिए थे, उन्हें शेर एवं चीते जैसे बड़े जानवरों के शिकार का बड़ा शौक था।
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रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का विवाह व शासनकाल
रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का विवाह सन 1542 में गोंड राजवंश के राजा दलपत शाह से हुआ था, जो गढ़ा राज्य के राजा संग्राम शाह के गोद लिया गया पुत्र थे।
सन 1545 में रानी दुर्गावती ने अपने पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम वीर नारायण रखा था। इसके बाद सन 1550 में राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई, तब वीर नारायण सिर्फ 5 साल के थे।
इस मुश्किल घड़ी में रानी दुर्गावती जी ने हिम्मत नही छोड़ी और दुर्गावती ने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर खुद राज्य की शासक बन गई।
रानी दुर्गावती एक साहसिक और पराक्रमी महिला थीं। उन्होंने गोंडवान क्षेत्र को अपनी धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक उन्नति के माध्यम से सुदृढ कीया।
उन्होंने सतीत्व और धर्म का पालन करते हुए गोंडवान क्षेत्र के लोगों के लिए एक न्यायपूर्ण और समृद्ध साम्राज्य स्थापित किया।
रानी दुर्गावती के गोंडवान क्षेत्र के यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ।
ज़ब अकबर ने दुर्गावती के राज्य पर आक्रमण करा
बताया जाता है कि रानी दुर्गावती बेहद ही सुंदर थी और उनके सुंदरता की चर्चा जब अकबर के कानों तक पहुंची, तब अकबर के मन में दुर्गावती लिए बहुत उत्सुकता पैदा हुई।
मुगल शासक अकबर ने सोचा कि रानी दुर्गावती के गोंडवान राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डाल दू।
उसने विवाद प्रारम्भ करने के लिए रानी दुर्गावती के सबसे प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग तुरंत ठुकरा दी। इस बात को अकबर अपने अपमान के रूप में लेकर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया।
जब सन 1562 में रानी दुर्गावती के राज्य मंडला पर आसफ खां ने हमला हमला बोला और तब यह है बात रानी दुर्गावती तक पहुंची तो दुर्गावती ने भी अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और युद्ध की योजना बनाने के लिए कहा।
उनके एक दीवान ने बताया कि मुगल सेना बहुत ज्यादा है उसके मुकाबले हम कुछ भी नहीं, तब उत्तर में रानी ने कहा कि इस शर्मनाक जीवन के बदले सम्मान से युद्ध में मरना बेहतर है मेरे लिए उन्होंने युद्ध करने का फैसला किया।
दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी।
लेकिन बताया जाता है कि इस युद्ध में आसफ खां के छक्के छुड़ा दिए थे और और आसफ खां को वहाँ से भागना से भागना पड़ा था, इस आधार से माना जाता है कि इस युद्ध में दुर्गावती की जीत हुई थी।
अगली बार 24 जून 1564 को आसफ खां ने अधिक मुगल सेना के साथ फिर से हमला बोला। असफ़ खान ने बड़ी – बड़ी तोपों को तैनात किया था। रानी दुर्गावती अपने हाथी सरमन पर सवार हो कर लड़ाई के लिए आईं। उनका बेटा वीर नारायण भी इस लड़ाई में शामिल हुआ।
उसने मुगलों को रण से तीन बार खदेड़ दिया लेकिन आखिर में वो घायल हो गया और रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया।
रानी फिर से युद्ध करने लगी और अपना शौर्य दिखाते हुए बहुत से मुगल सैनिकों को मौत क़ी घाट उतारा।
लेकिन अबकी बार मुग़ल सेना बहोत ज्यादा थी। युद्ध लड़ते लड़ते रानी बुरी तरिके से घायल हो गयी थी लेकिन अंत तक हिम्मत नहीं हारी।
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रानी दुर्गावती की मृत्यु (Rani Durgavati Death)
बताया जाता है कि रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) मुगल सेना से युद्ध करते – करते बहुत ही बुरी तरह से घायल हो चुकीं थीं। तभी युद्ध करते समय एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका।
दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।
रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ।
अतः 24 जून सन 1524 को रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने पेट में मारकर वीरगति को प्राप्त हो गई।
इस दिन को वर्तमान में “बलिदान दिवस” के नाम से जाना जाता है. इस प्रकार एक बहादुर रानी जो मुगलों की ताकत को जानते हुए एक बार भी युद्ध करने से पीछे नहीं हठी, और अंतिम साँस तक दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई लडती रहीं।
बताया जाता है कि जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का सम्मान
🔶रानी दुर्गावती के सम्मान में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सन 1983 में जबलपुर के विश्वविध्यालय को उनकी याद में “रानी दुर्गावती विश्वविध्यालय” (Rani Durgavati Vishwavidyalaya) कर दिया गया।
🔶 भारत सरकार ने रानी दुर्गावती को श्रधांजलि अर्पित करने हेतु 24 जून सन 1988 में उनकी मौत के दिन एक डाक टिकिट जारी की।
🔶 मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है।
🔶रानी दुर्गावती की याद में जबलपुर और मंडला के बीच स्थित बरेला में उनकी समाधि बनाई गई।
🔶 इसके अलावा पुरे बुंदेलखंड में रानी दुगावती कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल, और रानी दुगावती अभयारण्य हैं।
🔶जबलपुर में मदन मोहन किला स्थित हैं जोकि रानी दुर्गावती का उनकी शादी के बाद निवास स्थान था।
रानी दुर्गावती एक ऐसी नायिका हैं जिन्होंने अपने जीवन को बलिदान करते हुए अपनी जनता के लिए लड़ाई लड़ी और वीरता दिखाई। उनकी अद्भुत कहानी हमें यह सिखाती है कि साहस और समर्पण के माध्यम से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। रानी दुर्गावती का नाम भारतीय इतिहास में स्थायी रूप से बांधा हुआ है और उनकी कहानी हमेशा से आगे बढ़ती रहेगी।
रानी दुर्गावती से जुड़े कुछ सवाल :-
सवाल :- रानी दुर्गावती का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:- रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालंजर के किले में (बांदा, यूपी) चंदेल वंश में हुआ था।
सवाल :- रानी दुर्गावती की मृत्यु कब हुई थी ?
उत्तर:- रानी दुर्गावती की मृत्यु 24 जून सन 1524 को हुई थी।
सवाल :- दुर्गावती किसकी बेटी थी?
उत्तर:- रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।
सवाल :- गोंडवाना की रानी कौन थी?
उत्तर:- रानी दुर्गावती भारत की एक प्रसिद्ध वीरांगना थीं, जिसने गोंडवाना मध्यप्रदेश में शासन किया।
सवाल :-रानी दुर्गावती जी की जयंती कब मनाई जाती है?
उत्तर:- रानी दुर्गावती जी की जयंती को 5 अक्टूबर मनाई जाती है।
सवाल :- रानी दुर्गावती जी की पुण्यतिथि कब मनाई जाती है?
उत्तर:- रानी दुर्गावती जी की पुण्यतिथि को 24 जून मनाई जाती है।