रानी पद्मिनी का इतिहास |Rani Padmini History in Hindi
चित्तौड़गढ़ का किला – राजस्थान की उस धरती का एक ऐसा नगीना, जहाँ हर पत्थर और हर दीवार अपने सीने में सैकड़ों साल पुरानी कहानियाँ छुपाए हुए है। ये किला सिर्फ एक ढांचा नहीं, बल्कि राजपूताना के गर्व, साहस और त्याग की एक जीती-जागती तस्वीर है। इन्हीं कहानियों में एक नाम गूँजता है – रानी पद्मिनी। एक ऐसी रानी, जिसकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक फैले, और जिसके साहस ने इतिहास के पन्नों को अमर बना दिया। पद्मिनी चित्तौड़ की रानी थी। पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है। वह 13वीं-14वीं सदी की महान भारतीय रानी (रानी) है। इतिहास में रानी पद्मावती (Rani Padmavati) की सुंदरता के साथ शौर्य और बलिदान के भी विस्तृत वर्णन मिलते हैं।
जब भी चित्तौड़गढ़ की बात होती है, रानी पद्मिनी का नाम अपने आप जुबान पर आ जाता है, जैसे वो आज भी उस किले की हवा में, उन दीवारों में बसी हों। लेकिन ये कहानी क्या है? क्या ये सिर्फ एक कवि की कल्पना है, या इसके पीछे कोई सच छुपा है? चलिए, इस कहानी को करीब से देखते हैं और जानते हैं कि रानी पद्मिनी कौन थीं – एक किंवदंती या हकीकत का हिस्सा।
(Rani Padmini) रानी पद्मिनी का आगमन: एक नई रोशनी
रानी पद्मिनी की कहानी उनकी खूबसूरती से शुरू होती है। इस कथा का प्रवचन मुख्य रूप से मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पद्यावत’ नामक हिन्दी काव्य-ग्रन्थ से आरम्भ होना माना गया है। इस ग्रन्थ की रचना 1540 ई. में की गयी थी। पद्मिनी की कथा का पूरा वर्णन जायसी के पद्मावत से हमें प्राप्त है जो इस प्रकार है-पश्विनी सिंहलद्वीप(आज का श्रीलंका) के गन्धर्वसेन नामक राजा की पुत्री थी जिनका नाम पद्मावती था। । उसके पास हीरामन नामक एक सुशिक्षित तोता था। उनकी शादी मेवाड़ के शासक राणा रतन सिंह से हुई। ये शादी सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं थी, बल्कि दो संस्कृतियों और दो राजवंशों का संगम थी। रानी पद्मिनी की सुंदरता ऐसी थी कि लोग कहते थे कि उनकी एक झलक से सूरज भी शरमा जाए। उनकी आँखों में वो चमक थी जो किसी को भी मंत्रमुग्ध कर दे, और उनका व्यक्तित्व ऐसा कि वो हर किसी के दिल में बस जाती थीं। लेकिन ये सुंदरता ही उनके जीवन का सबसे बड़ा संकट बन गई।
राणा रतन सिंह चित्तौड़ आया तब उसकी सेना में एक राघव चेतन नामक ब्राह्मण, जो जादू-टोने में कुशल था, आ रहा था। कुछ दिनों में राघव चेतन का भेद खुल गया तो उसे चित्तौड़ से निकलने की आज्ञा दी बचाया गयी। चित्तौड़ से जाने की अवधि में संयोग से उसने पद्मिनी को देखा और मूच्छित हो गया। चेतना आने पर वह वहाँ से दिल्ली पहुँचा। चित्तौड़ से निर्वासित राघव चेतन ने राणा का सर्वनाश करने की ठान ली। अवसर आने पर उसने पचिनी के सौन्दर्य का वर्णन सुल्तान से किया जिसे सुनकर उसे पधिनी को हथियाने और चितोड लेने की धुन सवार हो गयी।
राणा रतन सिंह एक निपुण और वीर योद्धा थे। उन्होंने अपने राज्य को शांति और समृद्धि से चलाया, लेकिन जब बात रानी पद्मिनी की आई, तो उनके लिए ये सिर्फ उनकी पत्नी नहीं, बल्कि उनके सम्मान का सवाल थी। राजपूताना में उस वक्त सम्मान सबसे बड़ी चीज थी, जिसके लिए लोग अपनी जान तक दे देते थे। रानी पद्मिनी भी इस परंपरा का हिस्सा थीं।
अलाउद्दीन का छल: एक युद्ध का बीज
अलाउद्दीन खिलजी – दिल्ली का वो सुल्तान जो अपनी ताकत और चालबाजी के लिए मशहूर था। जब उसे रानी पद्मिनी की खूबसूरती की खबर मिली, तो उसका मन डोल गया। कहा जाता है कि उसने राणा रतन सिंह से मिलने की इच्छा जताई, लेकिन उसका असली मकसद रानी पद्मिनी को देखना था। राणा रतन सिंह ने अपनी राजपूती मेहमाननवाजी दिखाते हुए उसे किले में बुलाया, लेकिन ये शर्त रखी कि रानी को सीधे नहीं दिखाया जाएगा।
इसके लिए एक आईना इस्तेमाल किया गया, जिसमें अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी की एक झलक देखी। लेकिन ये झलक उसके लिए काफी नहीं थी। उसकी लालसा और बढ़ गई। उसने एक चाल चली – उसने राणा रतन सिंह को बंदी बना लिया और कहा कि अगर रानी पद्मिनी उसके साथ दिल्ली नहीं जातीं, तो राणा की जान ले ली जाएगी।
ये चित्तौड़गढ़ के लिए एक मुश्किल घड़ी थी। राणा को छुड़ाने के लिए राजपूतों ने एक योजना बनाई। उन्होंने अलाउद्दीन को भरोसा दिलाया कि रानी पद्मिनी उसके साथ जाएँगी। लेकिन जब 1600 पालकियाँ अलाउद्दीन के शिविर तक पहुँचीं, तो उनमें औरतों की वेशभूषा में राजपूत सैनिक छुपे थे। एक खूनी जंग हुई, और राणा रतन सिंह को आजाद करा लिया गया। लेकिन ये जीत सिर्फ एक शुरुआत थी। अलाउद्दीन अब अपनी पूरी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ पर हमला करने को तैयार था।
जौहर: सम्मान की रक्षा का संकल्प
जब अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ के किले को चारों तरफ से घेर लिया, तो राजपूतों के सामने दो रास्ते थे – या तो हार मान लें, या अपने सम्मान के लिए आखिरी साँस तक लड़ें। राणा रतन सिंह और उनके साथियों ने फैसला किया कि वो दुश्मन से तब तक लड़ेंगे, जब तक उनकी ताकत बाकी है। लेकिन जब युद्ध में हार नजर आने लगी, तो रानी पद्मिनी के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ। अगर किला टूट गया, तो दुश्मन उनके सम्मान को छीन लेगा। राजपूत संस्कृति में ये कभी बर्दाश्त नहीं किया जाता था।
इसलिए रानी पद्मिनी ने एक कड़ा फैसला लिया – जौहर। बताया जाता है रानी पद्मिनी नें 16000 रानीयों के साथ जौहर क़र लिया लेकिन अपने सम्मान पर आंच नहीं आने दी।
जौहर क्या था? ये एक ऐसा त्याग था, जिसमें राजपूत रानियाँ और औरतें अपने आपको आग में झोंक देती थीं, ताकि दुश्मन उनके शरीर या सम्मान को हाथ न लगा सके। रानी पद्मिनी ने ये रास्ता चुना। उनके साथ हजारों औरतों ने भी यही फैसला लिया। कहा जाता है कि उस दिन चित्तौड़गढ़ के किले में एक विशाल चिता सजी, जिसमें रानी पद्मिनी और दूसरी रानियों ने अपनी जान दे दी। ये वो लम्हा था जब चित्तौड़ की धरती खून से लाल हो गई, लेकिन राजपूतों का सम्मान और उनकी शान बरकरार रही। बाहर राणा रतन सिंह और उनके सैनिक दुश्मन से आखिरी बार लड़ रहे थे, और अंदर ये बलिदान हो रहा था। जौहर और साका – ये दो घटनाएँ राजपूताना के इतिहास की सबसे बड़ी मिसाल बन गईं।
सच या किंवदंती: रानी पद्मिनी का रहस्य
रानी पद्मिनी की कहानी इतनी गहरी और प्रभावशाली है कि आज भी लोग इस पर बहस करते हैं। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि ये कहानी मलिक मुहम्मद जायसी की कविता ‘पद्मावत’ से शुरू हुई, जो 1540 में लिखी गई थी। जायसी एक सूफी कवि थे, और उन्होंने इस कहानी को एक प्रतीक के तौर पर लिखा था – रानी पद्मिनी सुंदरता और आत्मा का रूप थीं, और अलाउद्दीन लालच का। लेकिन चित्तौड़गढ़ के लोग इस बात को नहीं मानते।
वहाँ के बुजुर्ग, जो पीढ़ियों से अपने पुरखों की कहानियाँ सुनाते आए हैं, कहते हैं कि रानी पद्मिनी सच में थीं। उनका मानना है कि किले में आज भी वो आईना मौजूद है, जिसमें अलाउद्दीन ने उनकी झलक देखी थी, और वो जगह भी है जहाँ जौहर हुआ था।
एक बार मैं चित्तौड़गढ़ गया था। वहाँ एक बूढ़े गाइड से मुलाकात हुई। उसने बड़े गर्व से बताया कि रानी पद्मिनी का जौहर स्थल आज भी किले में है। उसने कहा कि रात के वक्त वहाँ से कुछ आवाजें सुनाई देती हैं, जैसे कोई इतिहास की गूँज हो। उसने वो टूटा हुआ आईना भी दिखाया, जो किले के एक कोने में रखा है। उस पल मैं सोच में पड़ गया – क्या ये सब सच है, या सिर्फ एक कहानी जो लोगों के दिलों में बस गई है? इतिहासकारों और स्थानीय लोगों के बीच ये बहस आज भी जारी है, लेकिन जो भी हो, रानी पद्मिनी की कहानी राजपूताना की धड़कन में जिंदा है।
चित्तौड़गढ़ आज: रानी पद्मिनी की यादें
आज जब आप चित्तौड़गढ़ के किले में कदम रखते हैं, तो वहाँ की हर चीज आपको उस दौर में ले जाती है। किले की ऊँची दीवारों पर आज भी वो निशान हैं, जो जंगों की गवाही देते हैं। वहाँ का पद्मिनी महल, जहाँ रानी रहती थीं, आज भी उस वक्त की शान की एक झलक दिखाता है। लोग कहते हैं कि वो तालाब, जिसके पास आईना रखा गया था, आज भी वैसा ही है। हर साल हजारों लोग यहाँ आते हैं और रानी पद्मिनी की कहानी सुनते हैं। ये किला यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है, लेकिन इसकी असली पहचान वो शान है, जो रानी पद्मिनी और उनके बलिदान ने दी।
रानी पद्मिनी मूवी (Rani Padmini Movie)
रानी पद्मिनी मूवी (rani padmini movie) भी आयी थी जिसका नाम पद्मावत रखा गया था जिसमे रत्न सिंह का रोल शाहिद कपूर और पद्मिनी का रोल दीपिका पादुकोण नें करा था
रानी पद्मिनी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि राजपूताना की वो शान हैं जो आज भी जिंदा है। उनकी कहानी साहस, त्याग और सम्मान की मिसाल है। अगर आप कभी चित्तौड़गढ़ जाएँ, तो उन दीवारों को छूकर देखें – शायद उनमें अभी भी उनकी गूँज बाकी हो।