रूठी रानी उमादे (Ruthi rani Umade) का परिचय
भारत के इतिहास में राजा रानी के प्रेम की बहुत सी कहानियां प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपको पता है, राजस्थान की एक प्रेम कहानी प्रेम से नहीं बल्कि अपने पति से सुहागरात वाले दिन ही रूठने की कहानी प्रसिद्ध है ।
वह कहानी है जोधपुर की रानी उमादे जिन्हें रूठी रानी भी कहा जाता है। राजा की लाखों मिन्नतों के बाद भी वो मानी नहीं और हमेशा के लिए उन्हें अकेलेपन का दुख दे दिया। उनका गुस्सा इतना प्रसिद्ध हो गया कि उन्हें ‘रूठी रानी’ (ruthi rani umade) कहा जाने लगा।
रानी उमादे का जन्म जैसलमेर के राजा राव लूणकरण के पुत्री के रूप में हुआ था।
रूठी रानी की कहानी जानने के लिए हमारे लेख को अंत तक पढ़ें।
आप इसे भी पढ़ सकते हैं : मेवाड़ के राणा कुंभा (1433-1468 ई.) का इतिहास
रूठी रानी उमादे का विवाह और रूठने की कहानी (Ruthi rani Umade story in Hindi):-
कहानी कुछ इस तरह है कि मारवाड़ के राजा मालदेव जब गद्दी पर बैठे तभी से उन्होंने अपने जोधपुर राज्य की सीमा चारों तरफ से बढ़ानी शुरू कर दी थी। इसी क्रम में उन्होंने जैसलमेर पर भी आक्रमण कर दिया।
लेकिन जैसलमेर के राजा लूणकरण भाटी यह युद्ध टालना चाहते थे क्योंकि उस समय मालदेव बहुत ही शक्तिशाली राजा हुआ करते थे। इसके लिए उन्होंने एक रणनीति बनाई और अपनी पुत्री उमा देकर विवाह का प्रस्ताव मालदेव के पास भेजा।
उस दौर में एक से बढ़कर एक खूबसूरत राजकुमारियां राजघरानों में थीं, लेकिन फिर भी रानी उमादे (ruthi rani umade) की खूबसूरती बहुत ही प्रसिद्ध थी। रानी उमादे ना सिर्फ सुंदर थीं बल्कि वो बेहद चतुर भी थीं।
मालदेव ने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया उमादे से शादी करने के लिए बारात लेकर जैसलमेर पहुंच गए। बताया जाता है कि लूणकरण भाटी ने एक योजना बनाई के वह जब मालदेव फेरों के समय थोड़ा व्यस्त रहेगा तभी वह मालदेव की हत्या कर देंगे।
यह बात उम्मादे के पास पहुंची तो उमादे ने एक सैनिक के सहारे यह बात मालदेव तक पहुंचा दी। बताया जाता है कि इस बात से मालदेव बहुत ज्यादा नाराज हो गए थे, तुरंत उन्होंने अपने आसपास सैनिकों की व्यवस्था करी और सकुशल शादी करके अपने राज्य लौट आए।
बताया जाता है कि रानी उमादे के साथ एक दासी आई थी जिसका नाम भारमली था और भारमली की सुंदरता की चर्चा पूरे राज्य में फैली हुई थी वह बेहद सुंदर थी। राज्य में जश्न का माहौल था उसी जश्न में राजा ने इतना नशा कर लिया था कि वह रानी के कमरे तक नहीं पहुंच पाए।
काफी इंतजार के बाद जब रानी ने राजा को बुलाने के लिए भारमली को भेजा। तो बताया जाता है कि राजा भारमली की खूबसूरती को देखकर राजा यह भूल गए थे कि उनकी पत्नी रानी उन्मादे उनका इंतजार कर रही है।
ज्यादा नशे में होने के कारण वह अपने पत्नी के पास नहीं जा पाए । देर रात तक इंतजार करने के बाद बताया जाता है कि जब रानी उमादे राजा के कमरे में पहुंची तो उन्होंने राजा को दासी के साथ देखा उन्हें यह अपने आतमसम्मान पर ठेस पहुंचाने जैसा लगा।
आप इसे भी पढ़ सकते हैं : वीर दुर्गादास राठौड़: महान राजपूत योद्धा
राजा की इस हरकत पर रानी ने राजा को सजा के रूप में उसी वक्त कह दिया था कि वह मरते दम तक राजा का मुंह नहीं देखेगी वहीं से रानी उमादे रूठ कर चली गई और अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में ही रहने लगी जिसे बाद में रूठी रानी का महल भी कहा जाने लगा।
रूठी रानी का महल तारागढ़(अजमेर)
जब सुबह राजा का नशा उतरा तो उन्होंने रानी से माफी मांगने की बहुत कोशिश की, लेकिन रानी नहीं मानी। फिर शेरशाह के अजमेर पर आक्रमण 1543 की आशंका को देखते हुए मालदेव ने रानी उमादे को जोधपुर वापस बुलाने के लिए कोशिश की।
मालदेव की अन्य रानियों को यह लगा कि अगर रानी उमादे यहां आ जाएगी तो उनका मान सम्मान घट जाएगा और यहां सिर्फ रानी उमादे को ही सम्मान मिलेगा।
सभी अन्य रानियों ने उसे जोधपुर आने से रोकने के लिए एक योजना बनाई आसा नामक चारण कवि को उमादे के पास भेजा, उसने रानी को एक दोहा सुनाया।
“मान राखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान दोय गयन्द न बंध ही, रकण खम्भे ठाण”
इस दोहे को सुनकर उमादे ने जोधपुर जाने से इनकार कर दिया और कोसाना में ही रहने लगी। 1547 ई में वह अपने दत्तक पुत्र राम के साथ गुंदोज चली गई, वहां से उसी के साथ केलवा जाकर रहने लगी। युद्ध में जाने से पूर्व राजा उमा दे से मिलने उनके महल जाते है तथा एक बार मिलने का निवेदन करते है मगर रानी इस प्रस्ताव को ठुकरा देती हैं।
जब युद्ध में राव मालदेव वीरगति को प्राप्त करते है तो उमा दे को भी बहुत कष्ट होता है वो पगड़ी के साथ सती हो जाती हैं। लेकिन रानी ने जिंदगी भर राजा का मुंह नहीं देखा।
क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी रूठे हुए ही बिता दी इसलिए उनका नाम रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।