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मेवाड़ के महाराणा लाखा (1382-1421ईस्वी ) का इतिहास

राणा लाखा (Rana Lakha) का परिचय

महाराणा लाखा (Rana Lakha) मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थेे। जिन्होंने मेवाड़ पर 1382 से 1421ईस्वी तक राज किया था । इन्हे राणा लाखा के नाम से जाना जाता है जबकि इनका पूरा नाम महाराणा ‘लक्षसिंह’ था।
उदयपुर के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नगर बदनोर की स्थापना का श्रेय महाराणा लाखा को जाता है।
राणा लाखा राणा हम्मीर के पोते थे और इनके पिता का नाम राणा क्षेत्र सिंह था।
राणा लाखा के पुत्र का नाम– महाराणा मोकल सिंह, चुंडा सिंह, दुल्हा सिंह, अजा सिंह और राघवदेव सिंह था।
महाराणा लाखा के काल में ही पिछ/छिल्लर नामक चिड़ीमार बंजारे ने बैल क़ी स्मृति में उदयपुर की पिछोला झील का निर्माण करवाया था
राणा लाखा के दरबार में धनेश्वर भट्ट व झोटिंग भट नामक विद्वान थे।

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राणा लाखा (Rana Lakha) का साम्राज्य विस्तार

जबसे महाराणा लाखा (Maharana Lakha) ने चित्तौड़ की गद्दी प्राप्त की तब से वह अपने पैतृक राज्य की सीमा को बढ़ाने और अपने शत्रुओं को दबाने में लगा रहा।
सबसे पहले उसने बदनोर प्रदेश को अपने अधीन कर लिया।

उसके समय में डोडिया राजपूतों को अपने यहां आश्रय देखकर राजपूत शक्ति का संगठन किया तथा धवल नामी डोडिया को तरनगढ़, नंदराय और मसूदा आदि की जागीर दे कर अपना उमराव बनाया ।
बताया जाता है कि जब राणा लाखा (Rana Lakha) मेवाड़ के राजा थे, तब दिल्ली सल्तनत गियासुद्दीन के हाथ में थी। राणा लाखा (Rana Lakha) ने दिल्ली सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय को हराकर तीर्थंकर समाप्त किया था।
भाग्य से राणा लाखा के समय में जावर नामक स्थान पर चाँदी की खान निकल आती है जो की एशिया की सबसे बडी चाँदी की खान है।
जिससे लाखा की समस्त आर्थिक समस्याएँ हल हो जाती हैं, इसी घटना से राणा लाखा का शासनकाल उन्नति की ओर बढ जाता है | जिससे उन्होंने कई किलो का निर्माण करवाया ।
जो मंदिर अलाउद्दीन द्वारा आक्रमण के समय तोड़े गए थे उनको उन्होंने दोबारा अच्छे से बनवाया था।

🔶 बताया जाता है कि एक बार राणा लाखा ने बूंदी नरेश हामाजी (हमीर सिंह हाड़ा) से तारागढ़ दुर्ग न प्राप्त करने पर एक प्रतिज्ञा ली थी कि “जब तक बूंदी का तारागढ़ जीत नहीं लूंगा अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा”
राणा लाखा के सरदारों ने तारागढ़ बूंदी के जैसा मिट्टी का दुर्ग बनवाया और उसको जीतकर लाखा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करी ।
मिट्टी के नकली तारागढ़ की रक्षा करते हुए कुंभकरण हाडा ने अपनी जान दे दी थी। इस बात से पता चलता है कि राजपूत कितने वीर और साहसि थे जो अपनी मातृभूमि के लिए प्राण देते समय तनिक भी नहीं सोचते थे।

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राणा लाखा (Rana Lakha) का मारवाड़ की हंसा बाई से विवाह

एक दिन जब राणा लाखा अपने दरबार में बैठे हुए थे तब मारवाड़ के राठौड़ रणमल की बहन हंसा बाई के संबंध में नारियल महाराणा के कुंवर चुंडा के लिए लेकर आए थे।उस समय चुंडा दरबार में उपस्थित नहीं थे।
महाराणा ने हंसी हंसी में कह दिया कि अब बुड्ढों के लिए नारियल कौन लेके आये ?
बाद में रणमल ने ये सुनकर सुनकर एक पत्र भेजा कि यदि हंसा बाई से होने वाले पुत्र का मेवाड़ की गद्दी पर अधिकार स्वीकार कर लिया जाए तो उसका विवाह लाखा से कर दिया जायेगा।
राणा बड़े असमंजस की स्थिति में पड़ गए थे । सबसे बड़े पुत्र चुंडा के होते हुए ऐसा करना उनको उचित नहीं लगा।
जब चुंडा को यह बात पता लगी तो उसने राणा रणमल के पास एक पत्र भिजवाया कि वह राज्य का अधिकार छोड़ने के लिए तैयार है यदि राणा हंसा बाई का विवाह करवा दिया जाए तो।
फिर महाराणा लाखा ने हंसा बाई से विवाह किया । जिनसे उनके मोकल नामक पुत्र हुआ था ।तब राणा लाखा के बड़े पुत्र चुंडा ने प्रतिज्ञा ली थी क़ी मेवाड़ के सिंहासन पर उसका या उसके किसी भी उत्तराधिकारी का कोई अधिकार नहीं रहेगा बल्कि राजकुमारी हंसा बाई से उत्पन्न होने वाली संतान का होगा। हंसा बाई ने मोकल को जन्म दिया और वह मेवाड़ का महाराणा बना ।

इसीलिए राजस्थान के इतिहास में राजकुमार चुंडा को “राजस्थान का भीष्म पितामह” कहा जाता है
चुंडा के त्याग से प्रसन्न होकर राणा लाखा ने चुंडा को मोकल का रक्षक नियुक्त किया और यह नियम कर दिया कि भविष्य में मेवाड़ के महाराणा के सभी पट्टो, परवानो और सनदो पर चुंडा और उनके वंशजों के भाले का निशान अंकित होता रहेगा।

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राणा लाखा (Rana Lakha) की मृत्यु

मेवाड़ के सफलतम राजाओं में शामिल राणा लाखा की मृत्यु सन 1421ईस्वी में सामान्य तरीके से हुई। इनकी मृत्यु के पश्चात महाराणा मोकल की देखरेख इनकी माता हँसाबाई द्वारा की गई।

चुंडा सिंह ने पिता राणा लाखा को दिए वचन का पालन किया और महाराणा मोकल को मेवाड़ का शासक बनाया।

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