आज हम हिंदुस्तान के एक पराक्रमी योद्धा के बारे में जानकारी लेने वाले है, जो एक पराक्रमी योद्धा के साथ ही ज्ञानी और न्यायपूर्ण निर्णय लेने वाले शासक थे। मेवाड़ के महान राजपूत शासक महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Singh) अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं।
एक ऐसा राजपूत शासक जिसने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। पुरे हिंदुस्तान में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो महाराणा प्रताप के बारे में नही जानता होगा।
महाराणा प्रताप जयंती (Maharana Pratap Jayanti) हर वर्ष 9 मई को मनाई जाती है व हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है|
चलिए जानते है वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह के इतिहास (Maharana Pratap Singh History In Hindi )के बारे में |
महाराणा प्रताप सिंह का जन्म (Maharana Pratap Singh Ka Janm) और बचपन
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Singh) का जन्म 9 मई 1540 ई व हिंदू पंचांग के अनुसार विक्रम संवत 1597 की ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को कुम्भलगढ़ दुर्ग में बादल महल के जूना कचहरी में हुआ था।
महाराणा प्रताप मेवाड़ के शासक राजपूतों के सिसोदिया वंश के महाराणा उदय सिंह के पुत्र थे। उनकी माता का नाम जेवंताबाई जो पाली के अखेराज सोनगरा की पुत्री थी। महाराणा प्रताप को शस्त्र विद्या की शिक्षा जयमल राठौर ने दी थी। उनके गुरु का नाम आचार्य राघवेंद्र था।
17 वर्ष की उम्र में प्रताप का विवाह है रामरख पंवार की पुत्री अजमदे पंवार के साथ हुआ जिससे कुंवर अमर सिंह का जन्म हुआ मालदेव के ज्येष्ठ पुत्र राम की पुत्री फुल कवर का विवाह भी राणा प्रताप से हुआ था।
प्रताप के दादा महान योद्धा राणा सांगा थे और दादी महारानी कर्मावती थीं।
उन्हें बचपन में कीका के नाम से भी जाना जाता था। उन्हें यह नाम भीलों (एक समुदाय) से मिला, जिनके साथ उन्होंने शुरुआती दिन बिताए। कीका का अर्थ भीलों की बोली में ‘बेटा’ होता है। महाराणा प्रताप के पास चेतक नाम का एक घोड़ा था जो उन्हें सबसे प्रिय था।
प्रताप की वीर गाथाओं में चेतक का अपना स्थान है। उन्होंने फुर्ती, तेजी और बहादुरी से कई लड़ाइयां जीतने में अहम भूमिका निभाई।
महाराणा प्रताप की ऊंचाई और वजन (Maharana Pratap Height & Weight)
बताया जाता है कि महाराणा प्रताप का कद (height) था वो पूरा 7 फीट 5 इंच था और वजन (weight) 110 किलो था , वह 80 किलो का भाला, 208 किलो की दो तलवारे और 72 किलो के कवच के साथ युद्ध लड़ते थे।
महाराणा प्रताप का पूरा नाम
महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। उन्हें बचपन में कीका के नाम से भी जाना जाता था।
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप मेवाड़ के शासक राजपूतों के सिसोदिया वंश के महाराणा उदय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। न्याय दृष्टि से प्रताप की ही बारी राजगद्दी पर बैठने की थी, परंतु भटियानी रानी के आग्रह से और कुछ सरदारों के सहयोग से जब सभी लोग महाराणा उदयसिंह के दाह संस्कार में लगे हुए थे, जगमाल का राज्य तिलक कर दिया गया।
श्मशान भूमि में जगमाल को उपस्थित नहीं पाकर ग्वालियर के राजा राम सिंह और जालौर के अखेराज सोनगरा ने वही उत्तराधिकारी संबंधी प्रश्न उठाया और वे गोगुंदा लौटे और महाराणा प्रताप को महाराणा घोषित कर दिया गया। गोगुंदा में महादेव बावड़ी राणा राणा प्रताप का 32 वर्ष की आयु में 28 फरवरी 1572 को राज्य अभिषेक किया गया।
फिर प्रताप कुछ समय बाद कुंभलगढ़ चला गया जहां राज्य अभिषेक का उत्सव मनाया गया इस पर जगमाल अप्रसन्न होकर अकबर के पास पहुंचा जिसने उसे पहले जहाजपुर और फिर आंधी की जागीर दे दी। सिरोही में ही 1583 दत्तानी युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई।
उनकी दयालुता और न्यायपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता ने उनके शत्रुओं का भी दिल जीत लिया था। वह भारत का एकमात्र शासक है जिसने मुगलों की कभी अधीनता स्वीकार नहीं की और इसके लिए वह आज तक देश का सबसे प्रसिद्ध शासक है। इसके अलावा, महाराणा प्रताप को एक मजबूत राजपूत चरित्र का व्यक्ति कहा जाता था, वे कहीं अधिक बहादुर और शूरवीर थे।
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महाराणा प्रताप का शासनकाल (Maharana Pratap Singh History)
जब महाराणा प्रताप 1572 ईस्वी में मेवाड़ राज्य से के स्वामी बने तो उन्होंने पाया कि उनके सामने प्रमुख दो समस्याएं थी एक तो यह कि अपने पिता के द्वारा स्थापित नई राजधानी और उनके आसपास की नई बस्तियों की समुचित व्यवस्था करना और दूसरी यह कि अकबर की बढ़ती हुई शक्ति और उसकी सत्तावादी नीति का मुकाबला करना।
महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे दिलचस्प तथ्य यह है, कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के राणा प्रताप को अपने अधीन करना चाहता था। अतः अकबर ने राणा प्रताप को मनाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किये।
अकबर द्वारा राणा के पास भेजे गए चार शिष्टमंडल
जिसमें सबसे पहले जलाल खां सितंबर 1572 में राणा प्रताप के पास अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने के लिए पहुंचे राणा प्रताप ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
इसी क्रम में मानसिंह 1573 में अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने के लिए पहुंचे। इस संबंध में कर्नल टॉड ने मानसिंह और राणा के सम्मेलन वार्तालाप और व्यवहार के संबंध की घटना उदय सागर पर होना बताया है बताया जाता है कि वहां एक भोज का आयोजन राणा की तरफ से अतिथि के रूप में किया गया था उसमें राणा ने स्वयं उपस्थित नहीं होकर अपने कुंवर अमर सिंह को भेजा, जब यह पूछा गया कि राणा इसमें सम्मिलित क्यों नहीं हुए तो यह बता दिया गया कि महाराणा कुछ अस्वस्थ है।
मानसिंह समझ गया कि राणा उस से परहेज करते हैं क्योंकि कच्छवाहो ने अकबर से वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिया थे। कुंवर बिना भोजन किए वहां से चल दिया ठीक उसी घटना के बाद अपमान का बदला लेने के लिए मुगल सेना को को लेकर हल्दीघाटी मेवाड़ में आ धमका।
कई लेखकों ने मानसिंह के अपमान की कथा के साथ अकबर का वैमनस्य सीधा जोड़ दिया है उसी को हल्दीघाटी के युद्ध का कारण बताया है परंतु मानसिंह के गोगुंदा जाने 1573 और हल्दीघाटी के युद्ध के होने में 3 वर्ष का अंतर है अर्थात उसको युद्ध का कारण नहीं माना जाना चाहिए।
युद्ध का सीधा कारण यही था कि अकबर मेवाड़ की स्वतंत्रता समाप्त करने पर तुला हुआ था और प्रताप उसकी रक्षा करने के लिए तुले हुए थे ।
इसी क्रम में 1573 में राजा भगवानदास और टोडरमल भी राणा प्रताप को मनाने पहुंचे, पर राणा प्रताप ने चारों को निराश कर दिया। राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हल्दीघाटी (घाटी) का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।
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1576 में हल्दीघाटी का यूद्ध (Haldighati Yudh in Hindi)
हल्दीघाटी का युद्ध (haldighati yudh) 18/21 जून 1576 ई. को मेवाड़ और मुगलों के बीच लड़ा गया था। इसमें मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था,और भील सेना का मुखिया राणा पूंजा भील था।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ने वाला एकमात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी था। इस युद्ध में मानसिंह और आसफ खां ने मुगल सेना का नेतृत्व किया। अब्दुल कादिर बदायुनी ने इस युद्ध का हाल सुनाया।
बताया जाता है कि इस युद्ध में महाराणा अपने साथी लूणकरण रामसा, ताराचंद , पूंजा भील के साथ शत्रु दल को चीरता हुआ मानसिंह के हाथी के पास पहुंच गया उसने फौरन अपने चेतक घोड़े को ऐसी ऐडी मारी कि उसने अपने अगले पांव को हाथी के दांत पर टिका दिया शीघ्र ही राणा ने मानसिंह का काम तमाम करने के लिए भाले से वार उस पर वार किया लेकिन निःसफल निकल गया मानसिंह अपने होदे में दुबक गया और और भाला सीधे महावत के जा लगा।
इस चला-चली में घोड़े की एक टांग हाथी की सूंड के खंजर से कट गई। तो राणा को मुगल सैनिकों ने चारों ओर से घेर लिया उसी क्षण राजपूत वीरों ने उस भीड़भाड़ से राणा को किसी तरह निकालकर बचा लिया।
टूटी टांग के घोड़े से राणा अधिक दूर नहीं पहुंचा था कि मार्ग में ही चेतक की मृत्यु हो गई राणा ने उसके अंतिम संस्कार द्वारा अपने प्यारे घोड़े को श्रद्धांजलि अर्पित की।
शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया और महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला।
इसी घटना के साथ बताया जाता है कि शक्ति सिंह भी जो मुगल दल के साथ उपस्थित था किसी तरह बचकर जाते हुए राणा के पीछे चल दिया और अपने घोड़े को राणा को देकर अपने कर्तव्य का पालन किया ।
आसफ खाँ ने इस युद्ध को जिहाद की संज्ञा दी। आधुनिक दिनों में भी हमने देखा है कि जिहादी काफिरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह छठी सदी की वही पुरानी मानसिकता है जो आज भी पूरी मानवता को खतरे में डाल रही है।
हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह के नेतृत्व में अकबर की विशाल सेना से उसका सामना हुआ। इस युद्ध में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने 1576 में लगभग 20,000 सैनिकों के साथ 70 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में यह सबसे चर्चित युद्ध है। इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुन्दा, कुम्भलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का अधिकार हो गया। अधिकांश राजपूत राजाओं ने मुगलों के नियमों को स्वीकार किया लेकिन महाराणा प्रताप ने मना कर दिया। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई वर्षों तक संघर्ष किया।
मेवाड़ पर पुनः विजय और पुनरुद्धार
बंगाल और बिहार में विद्रोह के साथ पंजाब में मिर्जा हकीम की घुसपैठ के बाद 1579 के बाद मेवाड़ पर से मुगल का दबाव कम हो गया था। इसके बाद अकबर ने अब्दुल रहीम खान-ए-खाना को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा लेकिन वह अजमेर में ही रुक गया। सन 1582 में, प्रताप सिंह (Maharana Pratap Singh) ने दिवेर की लड़ाई में दिवेर में मुगल चौकी पर हमला करके कब्जा कर लिया।
इससे मेवाड़ में सभी 36 मुगल सैन्य चौकियों का स्वत: परिसमापन हो गया। इसके बाद अकबर ने साल 1584 में जगन्नाथ कछवाहा को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस बार भी मेवाड़ की सेना ने मुगलों को हराकर उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 1585 में, अकबर लाहौर चला गया और अगले बारह वर्षों तक उत्तर-पश्चिम की स्थिति को देखता रहा।
इस अवधि के दौरान मेवाड़ में कोई बड़ा मुगल अभियान नहीं भेजा गया था। स्थिति का लाभ उठाते हुए, प्रताप ने वहां मुगल सेना को हराकर अधिकांश मेवाड़ चित्तौड़गढ़ और मांडलगढ़ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
इस अवधि के दौरान, उन्होंने आधुनिक डूंगरपुर के निकट चावंड नामक एक नई राजधानी का निर्माण किया।
महाराणा प्रताप ने छप्पन क्षेत्र में शरण ली और मुगल गढ़ों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया।
1583 तक उसने पश्चिमी मेवाड़ पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया था, जिसमें दिवेर, आमेट, मदारिया, जावर और कुंभलगढ़ के किले शामिल थे। इसके बाद उन्होंने चावंड को अपनी राजधानी बनाकर वहां चामुंडा माता मंदिर का निर्माण किया।
महाराणा थोड़े समय के लिए शांति से रहने में सक्षम थे और मेवाड़ में व्यवस्था स्थापित करने लगे। 1585 से अपनी मृत्यु तक राणा ने मेवाड़ का एक बड़ा भाग पुनः प्राप्त कर लिया था।
इस दौरान मेवाड़ से बाहर गए नागरिक वापस लौटने लगे। अच्छा मानसून था जिसने मेवाड़ की कृषि को पुनर्जीवित करने में मदद की। अर्थव्यवस्था भी बेहतर होने लगी और क्षेत्र में व्यापार बढ़ने लगा। राणा चित्तौड़ के पश्चिम के प्रदेशों पर कब्जा करने में सक्षम थे, लेकिन महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Singh) चित्तौड़ पर कब्जा करने के अपने सपने को पूरा नहीं कर सके.
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दिवेर युद्ध /मेवाड़ का मैराथन युद्ध (1582)
दिवेर युद्ध के दौरान अकबर ने में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) से लड़ने का फैसला किया। अकबर के चाचा सुल्तान खान थे, जिन्होंने इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व किया था।
वह विजयादशमी का दिन था और महाराणा ने नव संगठित सेना को दो भागों में विभाजित कर युद्धघोष छेड़ दिया था । इनमे से एक टुकड़ी की कमान स्वयं महाराणा के पास थी, और दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे।
मुगल सेना में 2 लाख सैनिक थे, जबकि राजपूत केवल 22 हजार थे। महाराज कुमार अमर सिंह के नेतृत्व में महाराणा प्रताप की सेना ने दिवेर के शाही थाने पर आक्रमण कर दिया।
यह युद्ध इतना भयंकर था कि प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खान के सिर पर भाले से हमला किया क़ी भाले से उसके शरीर और घोड़े दोनों को चिर कर उसके दो टुकड़े कर दिए।
दूसरी ओर, अमहाराणा प्रताप ने भी तलवार से इसी तरह बहलोल खान और घोड़े के दो टुकड़े कर दिए ।
एक राजपूत सरदार ने अपनी तलवार से हाथी का पिछला पांव काट दिया। इस युद्ध में विजयश्री महाराणा के हाथ लगी। स्थानीय इतिहासकारों का कहना है कि इस युद्ध के बाद एक कहावत चली थी कि “मेवाड़ के योद्धाओं ने घोड़े सहित सवार को एक ही वार मैं काट डाला”।
इस युद्ध में महाराणा ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई। 1582 में दिवेर की लड़ाई में, महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों को हराया और चित्तौड़ छोड़ दिया और मेवाड़ की अधिकांश भूमि पर फिर से कब्जा कर लिया।
महाराणा प्रताप पहले भारतीय राजा थे जिन्होंने बहुत ही सुनियोजित तरीके से गुरिल्ला रणनीति का इस्तेमाल किया और परिणामस्वरूप मुगलों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। अकबर के सामने महाराणा पूरे विश्वास के साथ खड़े रहे।
एक समय था जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबर के कब्जे में था, लेकिन महाराणा ने अपने मेवाड़ को बचाने के लिए अकबर से 12 साल तक युद्ध किया। अकबर ने उन्हें हराने के लिए हर हथकंडा अपनाया, लेकिन महाराणा अंत तक अपराजित रहे।
1582 के दिवेर युद्ध को इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है, क्योंकि इस युद्ध में राणा प्रताप के खोए हुए राज्यों को फिर से हासिल कर लिया गया था। इसके बाद राणा प्रताप और मुगलों के बीच एक लंबा संघर्ष हुआ, जिसके कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया अधिकारी और कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को “मेवाड़ का मैराथन” कहा।
कर्नल टॉड ने महाराणा और उनकी सेना के शौर्य को स्पार्टा के योद्धाओं के समान युद्ध कौशल का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे युद्ध के मैदान में अपने से चार गुना बड़ी सेना से भी नहीं डरते थे।
महाराणा प्रताप सिंह का घोड़ा चेतक (Chetak Ghoda)
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का एक नीले वर्ण का घोड़ा चेतक एक अरबी घोड़ा था जो महाराणा प्रताप ने गुजरात के एक व्यापारी द्वारा लाया गया था। यह व्यापारी काठियावाड़ी नस्ल के तीन घोड़े चेतक त्राटक और अटक लेकर मारवाड़ आया था।
महाराणा प्रताप ने युद्ध क्षमता के अनुसार घोड़ों की परीक्षा ली थी जिसमें अटक मारा गया था। शेष दो घोड़ों में से चेतक ज्यादा फुर्तीला और बुद्धिमान था जिसके कारण महाराणा प्रताप ने मुंह मांगी कीमत चुका कर चेतक को अपने पास रख लिया।
मेवाड़ सेना के श्रेष्ठ अश्व प्रशिक्षकों ने तथा महाराणा प्रताप स्वयं ने भी चेतक को प्रशिक्षित किया था। चेतक ने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर कई सारे युद्ध किए और और उनको जिताया था।
कहा जाता है कि चेतक इतना समझदार और फुर्तीला था कि महाराणा प्रताप की आँख की पलकों के इशारों से ही समझ जाता था और तुरंत उनके आदेश का पालन कर देता था।
चेतक घोड़े की एक खास बात यह भी थी कि महाराणा प्रताप उसके चेहरे पर हाथी की सूंड का मुखौटा लगाकर रखते थे ताकि युद्ध मैदान में दुश्मनों के हाथियों को कंफ्यूज किया जा सके।
चेतक ने बचाई थी महाराणा प्रताप सिंह की जान
जब हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप घायल हो गए थे तो, चेतक की एक टांग टूटी होने के बावजूद वह भागकर महाराणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से दूर ले जाकर उनकी जान बचाई थी।
चेतक महाराणा प्रताप को दूर ले जाते समय एक 26 फीट के दरिया को भी एक छलांग में पार कर गया था और जब तक दौड़ता रहा तब तक कि राणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर नहीं ले गया। हल्दीघाटी युद्ध में चेतक भी घायल हुआ था लेकिन बावजूद उसके वह प्रताप को एक सुरक्षित स्थान पर ले गया।
अधिक घायल होने के कारण और रक्त स्त्राव होने के कारण चेतक अंत में वीरगति को प्राप्त हो गया था। हल्दीघाटी क्षेत्र में आज भी महाराणा प्रताप के चेतक की समाधि बनी हुई है।
महाराणा प्रताप सिंह की म्रत्यु (How Maharana Pratap Singh died)
इतिहास के आधार पर,19 जनवरी 1597 को चावंड में एक शिकार दुर्घटना में लगी चोटों के कारण महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की 57 साल की आयु मैं मृत्यु हो गई, उनके सबसे बड़े पुत्र, अमर सिंह प्रथम ने उनका उत्तराधिकार किया। अपनी मृत्यु शैय्या पर, प्रताप ने अपने बेटे से कहा कि वह कभी भी मुगलों के अधीन न हो और मुगलों से चित्तौड़ को वापस जीत ले।
भारतीय कम्युनिस्टों और अंग्रेजों ने पूरी दुनिया में सिकंदर की तरह अकबर को महान सम्राट बना रखा है, लेकिन सत्ता और धर्म के नशे में चूर अकबर की सच्चाई को आज नहीं, कल स्वीकार करना ही होगा।
महान तो महाराणा प्रताप थे जिनको एक तुर्क ने भारतीय राजाओं के साथ मिलकर हर तरह से झुकाने या मौत के घाट उतारने का प्रयास किया, लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने आत्मसम्मान को बचाए रखा और कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
महाराणा प्रताप सिंह (Maharana Pratap Singh) का स्मारक कहा है ?
मेवाड़ के राजा महाराणा भगवत सिंह ने महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) और उनके वफादार घोड़े चेतक की याद में महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक का स्मारक बनवाया था। यह स्मारक मोती मगरी जिसे पर्ल हिल भी कहा जाता है की चोटी पर स्थित है।
यह स्मारक फतहसागर झील के पास बना हुआ है यहाँ से फतेहसागर झील साफ दिखाई देती है। इस स्मारक में कुछ महान पेंटिंग भी है जो राजघरानों के शौर्य और महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी घटनाओं की यादो को दर्शाती है।
पुरे जीवन में अपराजय रहे है महाराणा प्रताप सिंह (Maharana Pratap)
एक समय आया जब महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) पूरी तरह से निराश हो गए थे यह बात जब मेवाड़ के सहयोगी मित्र भामाशाह को पता चली, तो उन्होंने महाराणा प्रताप को हिम्मत दी और महाराणा प्रताप के लिए अपने राज्य के खजाने के भंडार खोल दिए। भामाशाह बचपन से ही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के सहयोगी मित्र के साथ सबसे विश्वासपात्र सलाहकार थे।
भामाशाह की यह मदद बहुत ही कारगर सिद्ध हुई जिससे महाराणा प्रताप ने फिर से सेना तैयार की । भामाशाह की मदद के कारण चित्तौड़ को आजाद कराने का संकल्प बहुत मजबूत हो गया महाराणा प्रताप ने वीरता के बल के आधार पर धीरे-धीरे मेवाड़ के सभी दुर्गों पर दोबारा अपना आधिपत्य जमा लिया।
अकबर दुबारा चित्तौड़ को जीतने की तैयारी करता रहा था लेकिन वह फिर कभी महाराणा प्रताप से विजय नहीं हो सका और महाराणा प्रताप अपने पुरे जीवन मैं अपराजय रहे।
दोस्तों हमने इस लेख में, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का इतिहास के बारे मैं जानकारी ली इसमें हमने महाराणा प्रताप के जीवनकाल और युद्ध के बारे में भी देखा | उम्मीद करते है की हमारा यह लेख पसंद आया होगा, धन्यवाद !
महाराणा प्रताप सिंह से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल
सवाल- महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था?
उत्तर- 9 मई 1540
सवाल- महाराणा प्रताप जयंती ((Maharana Pratap Jayanti)कब मनाई जाती है?
उत्तर- महाराणा प्रताप जयंती हर वर्ष 9 मई को मनाई जाती है
सवाल- महाराणा प्रताप ( Maharana Pratap) का राज्याभिषेक कब हुआ था?
उत्तर- 28 फरवरी 1572
सवाल- महाराणा प्रताप को बचपन में किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर- कीका
सवाल- महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर- चावंड में एक शिकार दुर्घटना में लगी चोटों के कारण 19 जनवरी 1597 को
सवाल- चेतक ( घोड़ा ) की छतरी कहां स्थित है ?
उत्तर- उदयपुर
सवाल- महाराणा प्रताप की छतरी कहां पर बनी हुई है ?
उत्तर- बाडोली (उदयपुर)
सवाल- प्रताप की सेना में हाथी का क्या नाम था ?
उत्तर- रामप्रसाद
सवाल- रामप्रसाद हाथी को मुगल सेना ने पकड़ लिया था और अकबर ने उसका नाम बदलकर क्या रखा?
उत्तर- पीर प्रसाद
सवाल- महाराणा प्रताप की ओर से युद्ध करने वाला एकमात्र मुस्लिम सेनापति कौन था ?
उत्तर- हकीम खाँ सूरी
सवाल- महाराणा प्रताप पुण्यतिथि कब मनाई जाती है ?
उत्तर- महाराणा प्रताप पुण्यतिथि हर वर्ष 19 जनवरी को मनाई जाती है