महाराणा उदयसिंह का परिचय (Maharana Udai Singh ii History)
महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh ii)को उदयपुर के संस्थापक के रूप में जाना जाता है,यह मेवाड़ के 53 वे महाराणा हुए थे।
मेवाड़ की भूमि पर अनगिनत योद्धा हुए है लेकिन हमारे इतिहास में कुछ ऐसे नायक भी हैं जिनका नाम राजस्थान इतिहास क़ी बात करते ही भुला दिया गया या दरकिनार कर दिया गया।
एक नाम जिसे कई इतिहासकारों की आलोचना झेलनी पड़ी वह है महाराणा उदय सिंह द्वितीय । बहुत से लोग यह नहीं जानते कि महाराणा प्रताप के संघर्ष से पहले ही उनके पिता यानी राणा उदय सिंह ने अकबर के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया था और वे अंतिम सांस तक मुगलो से लड़े थे।
महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास (Maharana Udai Singh ii History In Hindi) जानने के लिए लेख को अंत तक पूरा पढ़े…..
महाराणा उदयसिंह द्वितीय का जन्म और प्रारम्भिक जीवन (Maharana Udai Singh ii Birth)
महाराणा उदयसिंह द्वितीय (Maharana Udai Singh ii) का जन्म 4 अगस्त 1522 को चित्तौड़गढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराणा सांगा माता का नाम रानी कर्णावती है।
खानवा युद्ध में राणा सांगा के वीरगति प्राप्त करने के बाद उनकी माता कर्णावती ने हीं राणा उदय सिंह का लालन पोषण किया था।
राणा सांगा की हाड़ी रानी कर्मावती के दो अल्पायु पुत्र विक्रमादित्य व उदय सिंह थे। सन 1535 में गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था जिसमें रानी कर्मावती ने अन्य राजपूत स्त्रियों के साथ जोहर किया तथा राजपूत योद्धा लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
विक्रमादित्य की की हत्या कर राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज का अनारस पुत्र बनवीर शासक बन बैठा था उसे समय वह उदय सिंह की भी हत्या करना चाहता था लेकिन पन्ना ध्याय ने उदय सिंह की जगह अपने बेटे चंदन का बलिदान दिया था जो स्वामी भक्ति का बहुत हीं अच्छा उदारहण है।
पन्नाधाय कुछ सरदारों के सहयोग से उदय सिंह को चित्तौड़ से निकलकर कुंभलगढ़ ले गई वहां के किलेदार आशा देवपुरा ने उन्हें अपने पास रखा था।
बनवीर से स्वाभिमानी मेवाड़ी सरदार गाना करते थे वह एक-एक कर कुंभलगढ़ चले गए और उदय सिंह के नेतृत्व में शक्ति का संगठन करने लगे थे। कोठारिया, केलवा, बागोर आदि ठिकानों के जागीरदारों ने मिलकर उसे राजगद्दी पर भी बिठा दिया था।
जब महाराणा उदय सिंह का विवाह अखेराज सोनगरा की पुत्री से हुआ तो उनके समर्थकों की संख्या और भी बढ़ गई। अवसर पाकर उदय सिंह ने बनवीर पर आक्रमण कर दिया, 1540 ईस्वी में उदय सिंह ने बनवीर की हत्या करके चित्तौड़गढ़ पुनः प्राप्त कर लिया था।
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राणा उदयसिंह क़ी पत्नियां (Maharana Udai Singh ii Wives)
महाराणा उदय सिंह (Rana Udai Singh ii) की पहली पत्नी का नाम महारानी जेवन्ताबाई था जिनसे महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था बाकी ऐसा बताया जाता है उदय सिंह के बारे में की उदय सिंह की कुल 22 पतिया थी जिसे 24 पुत्र और22 पुत्री हुई थी
उदयसिंह की दूसरी पत्नी का नाम सज्जा बाई सोलंकी था जिन्होंने शक्ति सिंह और विक्रम सिंह को जन्म दिया था जबकि जगमाल सिंह ,चांदकंवर और मांकनवर को जन्म धीरबाई भटियानी ने दिया था ,ये उदयसिंह की सबसे पसंदीदा पत्नी थी।
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उदय सिंह और अफगान शक्ति
शेरशाह 1543 ईस्वी में मारवाड़ विजय के बाद चित्तौड़ की ओर बाद राणा उदय सिंह को अभी चित्तौड़ का काम हाथ में लिए हुए केवल तीन ही वर्ष हुए थे, राणा ने किले की चाबियां शेरशाह के पास भेज दी। जिससे संतुष्ट होकर आक्रमणकारी लौट गया वापस केवल शेरशाह ने खवास खाँ को अपना राजनीतिक प्रभाव बनाए रखना चित्तौड़ रखा था।
जब शेरशाह की मृत्यु हो गई तो नाम मात्र के प्रभाव को भी चित्तौड़ से समाप्त करने के लिए राजनीतिक अधिकारी को निकाल दिया गया था। आगे चलकर तो राणा उदय सिंह के पास इतनी क्षमता इकट्ठा हो गई थी कि उसने 1557 ईस्वी में अजमेर के अफगानी हकीम हाजी पठान को जिसने राणा की शक्ति को चुनौती दी थी उसको भी हार डाला था।
अकबर और उदय सिंह
बदायूंनी और अब्दुल अफजल के अनुसार यहां का महाराणा ने केवल अपनी स्वतंत्रता को हीं नहीं, बल्कि अन्य शासन को भी बचाए रखने के लिए प्रेरित करता रहता था। बूंदी, सिरोही, डुंगरपुर आदि उसके निकटतम सहयोगी थे ।
मालवा के बाद बहादुर ने 1562 ईस्वी में राणा की शरण ली थी। मेड़ता के जंगल को जिसे सरफुद्दीन हुसैन ने प्राप्त किया था राणा ने चित्तौड़ में आश्रय दे रखा था।
उदय सिंह के यह ढंग सीधे मुगल सत्ता को चुनौती दे रहे थे, इससे अकबर उदय सिंह से चिड़ा बैठा था इस परिस्थिति में अकबर का चित्तौड़ पर आक्रमण करना जरूरी हो गया था।
अकबर का चित्तौड़ पर आक्रमण
जैसे ही महाराणा उदय सिंह को शक्ति सिंह द्वारा यह सूचना प्राप्त हुई कि अकबर चित्तौड़ पर आक्रमण करने वाला है। तो युद्ध की तैयारी के लिए के सभी सरदारों के साथ मंत्रणा रखी गई
सरदारों ने राणा से आग्रह किया कि आप अपने बच्चों को लेकर पहाड़ियों में सुरक्षित जगह पर छिप जाए वह चाहते थे कि राणा अगर रहेंगे तो मुगलों के साथ लड़ाई आगे तक लड़ी जाएगी।
उदय सिंह ने चित्तौड़ दुर्ग जयमल राठौड़, फता चुंडावत, कल्ला राठौड़ी, ईसरदास चौहान, डोडिया सांडा सहित 8000 राजपूत को छोड़कर उदय सिंह पहाड़ियों में चले गए थे।
अक्टूबर 1567 में अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग को घेर लिया था, किलेबंदी 4 महीने तक बनाए रखी। चित्तौड़ दुर्गआसानी से नहीं जीता जा सकता था इसलिए दुर्ग विजय के लिए अकबर ने मोहरमगरी टीला व शाबाद का निर्माण करवाया था।
इस युद्ध में जयमाल राठौड़, फत्ता चुंडावत के नेतृत्व में केसरिया व फत्ता की पत्नी फूल कंवर के नेतृत्व में 700 रानियां ने जौहर किया था। इस युद्ध को चित्तौड़ का तीसरा व अंतिम साका कहा जाता है।
इसके बाद अकबर ने दुर्ग आसफ खान को सौंप दिया था।
इस युद्ध में अकबर ने बहुत ही बर्बरता दिखाई थी दुर्ग विजय के बाद चित्तौड़ दुर्ग में शरण लिए 30000 मासूम लोगों को मौत क़ी घाट उतारकर कत्लेआम मचाया था।
महाराणा उदय सिंह की मृत्यु
चित्तौड़ के पतन की घटना के बाद महाराणा अधिक समय तक जीवित नहीं रह सके जब वह कुंभलगढ़ से जहां वह बहुत समय तक रहे थे वहां से गोगुंदा आए तो दशहरे के बाद उनकी तबीयत खराब हो गई थी और वही गोगुंदा में 28 फरवरी 1572 विषय में उनकी मृत्यु हो गई थी।
वहां उनकी एक छतरी भी बनी हुई है। उसके बाद गोगुंदा में ही कृष्ण दास चुंडावत ने तलवार बांधकर महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कर दिया था